समझता हूँ स्पर्श तुम्हारे नयनों के
लालिमा फूटती भी है गह्वर में
उलझा निज विधा सायास
रोकता हूँ रुख तक आने से
आ गयी जो
नयन वही होंगे तुम्हारे
किंतु स्पर्श खो जायेंगे
तुम्हारा यूँ निहारना मुझे
रुचता है, मोहता है
मैं खोना नहीं चाहता
रोकता हूँ लालिमा निज की इसलिये।
जाने कितने क्षण अक्षण हुये
लालिमा फूटती भी है गह्वर में
उलझा निज विधा सायास
रोकता हूँ रुख तक आने से
आ गयी जो
नयन वही होंगे तुम्हारे
किंतु स्पर्श खो जायेंगे
तुम्हारा यूँ निहारना मुझे
रुचता है, मोहता है
मैं खोना नहीं चाहता
रोकता हूँ लालिमा निज की इसलिये।
जाने कितने क्षण अक्षण हुये
ऐसे में कुछ किया नहीं मैंने
बस अपने गीतों को
तुम्हारा नाम दिया
और वे मंत्र हो गये!
बस अपने गीतों को
तुम्हारा नाम दिया
और वे मंत्र हो गये!
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~ गिरिजेश राव