उसने कहा -
तुम अभिशप्त हो
भ्रष्ट आत्मा हो
उस क्षण मुक्त
हुआ
उसके रँगे काषाय को
ओढ़
यायावर निकल पड़ा
प्रेम यदि मिलना
मिलाना है
तो उसका कहना अभिशाप
नहीं
प्रेम यदि एकांत है
तो उसका कहना
भ्रष्टाचरण नहीं
यही सोच मैं द्वैत
हुआ
उसे क्षमा किया
और वह पुन: मिली
कहा - तुम्हें सुनना
है
ये जो शब्द हैं
मेरे मौन हैं
उसकी श्रुतियाँ
हैं
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