शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

सी!

छन छपी है धूप बगीची बीच सुबह सुबह
निफूले हरसिंगार तले तुम्हारी हँसी सी!
टँगी ओस अदद एक शमी की झुकी पत्ती पर 
सद्य:स्नात केश बूँद अकेली नयनाँ बसी सी!
उजली जमीं फेंक गया कोई लाल फूल कनैल तले
टोने टोटके वारी सब गोरे हाथ मेंहदी कसी सी