मेरा मन कुछ अधिक ही विचित्र है। प्रात:काल में कभी कुमार गन्धर्व के स्वर पर सवार हो कबीर निरगुन गाने लगते हैं - नीरभय निरगुन गुन रे गाऊँगा , गाऊँगा तो कभी मीरा की पीर चुभती चली जाती है - पिय को पंथ निहारत सगरी रैना बिहानी हो ..आज जाने क्यों तुलसी बाबा छाए हुए हैं।
ब्लॉग माध्यम का एक अनूठा पक्ष है - त्वरा। आज सोचा कि लाभ ले ही लूँ। प्रस्तुत हैं तुलसीकृत कवितावली उत्तरकाण्ड से छ्न्द 106 और 107। इन पंक्तियों की सान्द्रता मुझे अभिभूत करती रही है। सात्विक रोष ने गाली सी बात में भी इतनी करुणा भर दी है कि मन भीग भीग उठता है। बैरागी मन की मस्ती भी पीड़ा में झाँक जाती है। अपने साहब पर इतना भरोसा ! एक और पहलू है - रामजन्मभूमि वाली मस्जिद का संकेत। व्याख्या करने की योग्यता नहीं रखता, सरलार्थ दे रहा हूँ:
धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कहौ, जोलहा कहौ कोऊ ।
काहूकी बेटीसो बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ॥
तुलसी सरनाम गुलामु है रामको, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।
माँगि कै खैबौ, मसीतको सोइबो, लैबोको एकु न दैबेको दोऊ॥
चाहे कोई धूर्त कहे अथवा परमहंस कहे; राजपूत कहे या जुलाहा कहे, मुझे किसी की बेटी से तो बेटे का ब्याह करना नहीं है, न मैं किसी से सम्पर्क रख कर उसकी जाति ही बिगाड़ूँगा। तुलसीदास तो राम का प्रसिद्ध गुलाम है, जिसको जो रुचे सो कहो। मुझको तो माँग के खाना और मस्जिद में सोना है; न किसी से एक लेना है, न दो देना है।
मेरें जाति-पाँति न चहौं काहूकी जाति-पाँति,
मेरे कोऊ कामको न हौं काहूके कामको।
लोकु परलोकु रघुनाथही के हाथ सब,
भारी है भरोसो तुलसीके एक नामको॥
अति ही अयाने उपखानो नहि बूझैं लोग,
'साह ही को गोतु गोतु होत है गुलामको।
साधु कै असाधु, कै भलो कै पोच, सोचु कहा,
का काहूके द्वार परौं, जो हौं सो हौं रामको॥
मेरी कोई जाति-पाति नहीं है और न मैं किसी की जाति पाति चाहता हूँ। कोई मेरे काम का नहीं है और न मैं किसी के काम का हूँ। मेरा लोक-परलोक सब राम के हाथ है। तुलसी को तो एकमात्र रामनाम का ही बहुत बड़ा भरोसा है। लोग अत्यंत गँवार हैं - कहावत भी नहीं समझते कि जो गोत्र स्वामी का होता है, वही सेवक का होता है। साधु हूँ अथवा असाधु, भला हूँ अथवा बुरा, इसकी मुझे कोई परवा नहीं है। मैं जैसा कुछ भी हूँ राम का हूँ । क्या मैं किसी के दरवाजे पर पड़ा हूँ?
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ऐतिहासिक सन्दर्भ: जनभाषा में रामायण रचने, भूख से मरते ब्रह्महत्यारे को भोजन कराने, बिना छुआछूत की परवाह किए काशी प्लेग महामारी में जनसेवा के लिए आखाड़ों की स्थापना करने, अपने आराध्य की जन्मस्थान मस्जिद में फकीरों के साथ रहने आदि के कारण तुलसी पर बहुत प्रहार हुए। उनकी जाति पर प्रश्न उठाए गए। कुलटा ब्राह्मणी की राजपूत संतान जैसी गालियाँ दी गईं। ..तुलसी की अभिव्यक्ति इन झंझावातों के उत्तर में है।
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ऐतिहासिक सन्दर्भ: जनभाषा में रामायण रचने, भूख से मरते ब्रह्महत्यारे को भोजन कराने, बिना छुआछूत की परवाह किए काशी प्लेग महामारी में जनसेवा के लिए आखाड़ों की स्थापना करने, अपने आराध्य की जन्मस्थान मस्जिद में फकीरों के साथ रहने आदि के कारण तुलसी पर बहुत प्रहार हुए। उनकी जाति पर प्रश्न उठाए गए। कुलटा ब्राह्मणी की राजपूत संतान जैसी गालियाँ दी गईं। ..तुलसी की अभिव्यक्ति इन झंझावातों के उत्तर में है।
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बहुत सुन्दर रचना । आभार
जवाब देंहटाएंमस्जिद में फकीरों के साथ रहने,ब्रह्महत्यारे को भोजन कराने, बिना छुआछूत की परवाह किए...आदि आदि ...तुलसी के इन गुणों से परिचय बहुत कम है हम जैसी जनता का ...
जवाब देंहटाएंइस अनूठे परिचय के लिए आभार ....!!
यह संयोग है तो फिर क्यूं है की इन दिनों मैं भी कवितावली पढ़ रहा हूँ -कोचीन एअरपोर्ट पर समय काटने के लिए मैंने कवितावाली शुरू की (ट्विटर पर यह उद्घोष भी है २७ मार्च को ) -आज भी उसी के रस में डूब उतरा रहा हूँ -तुलसी का सृजन दुःख दारिद्र्य की अकथ पीड़ा से राहत पाने की आशा में राम के प्रति सम्पूर्ण समर्पण का दस्तावेज है .
जवाब देंहटाएंकभी कभी इनका आक्रोश भी जब फूटता है तो उक्त उद्धृत पंक्तियों को जन्म देता है .
मैं अभी पूरा कर लूं यह अप्रतिम रचना -जो तुलसी की आत्मकथा सी भी है तब शायद मैं भी अपने कुछ उदगार लिख सकूं !
अपने को इस स्थिति में भी जी लेने की क्षमता दिखाने वाले पर राम की पूरी कृपा होगी ही ।
जवाब देंहटाएंयह जानकारी मुझे चमत्कृत कर गयी। वाह!!
जवाब देंहटाएंअति ही अयाने उपखानो नहि बूझैं लोग,
जवाब देंहटाएं'साह ही को गोतु गोतु होत है गुलामको।
साधु कै असाधु, कै भलो कै पोच, सोचु कहा,
का काहूके द्वार परौं, जो हौं सो हौं रामको॥
बहुत सुन्दर! भक्तों की बात ही अनूठी है.
धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कहौ, जोलहा कहौ कोऊ ।
जवाब देंहटाएंकाहूकी बेटीसो बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ॥
तुलसी सरनाम गुलामु है रामको, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।
माँगि कै खैबौ, मसीतको सोइबो, लैबोको एकु न दैबेको दोऊ
बाबा तुलसीदास तो मानवता के संवाहक हैं,न भूतो न भविष्यति
जवाब देंहटाएंI'm also a blogger..
जवाब देंहटाएंआपने जो तुलसी दास जी कि रचनाओं को साजा किया है वो वर्तमान में काफी उपयोगी हैं... आपको धन्यवाद....