जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।
. . . . अद्भुत कहूँ यह शक्ति नहीं, जो कहता हूँ सादा कहता हूँ लगे बेसवादा, अड़बड़ा, झेल लो थोड़ा जियादा कहता हूँ। विशाल है, जटिल है, कठिन है ये जिन्दगी, उतार दूँ ? दावे नहीं, हैं सिसकियाँ, इन्हें सुखों का लबादा कहता हूँ।
दावे नहीं, हैं सिसकियाँ, इन्हें सुखों का लबादा कहता हूँ।
बहुत गूढ़ पंक्तियाँ....
यह सही है ...अलविदा उसे ही कहा जाता है जो लौट के नहीं आता....या फिर जिससे कभी दोबारा मुलाक़ात न हो....
ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं ....जिन्हें मैं अलविदा कहना चाहता हूँ.... पर कह नहीं पाता .... क्यूंकि ....विशाल है, जटिल है, कठिन है ये जिन्दगी, तो क्या उतार दूँ ? बहुत बेहतरीन कविता .... छू गई....
राव साहब ! सहज (सादा को इस अर्थ में लूं तो बुरा तो नहीं ? ) लिखना आसान नहीं होता .. इस कठिन साधना को आप नए साल में जारी रखेंगे , ऐसी आशा / शुभकामना कर रहा हूँ .. ...... आभार ,,,
विशाल है, जटिल है, कठिन है ये जिन्दगी, उतार दूँ ? दावे नहीं, हैं सिसकियाँ, इन्हें सुखों का लबादा कहता हूँ। जबाब नही आप की इस कविता का बहुत सुंदर. धन्यवाद
सुंदर अलविदा। शायद जा रहे साल के लिए।
जवाब देंहटाएंदावे नहीं, हैं सिसकियाँ, इन्हें सुखों का लबादा कहता हूँ।
जवाब देंहटाएंबहुत गूढ़ पंक्तियाँ....
यह सही है ...अलविदा उसे ही कहा जाता है जो लौट के नहीं आता....या फिर जिससे कभी दोबारा मुलाक़ात न हो....
ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं ....जिन्हें मैं अलविदा कहना चाहता हूँ.... पर कह नहीं पाता .... क्यूंकि ....विशाल है, जटिल है, कठिन है ये जिन्दगी, तो क्या उतार दूँ ? बहुत बेहतरीन कविता .... छू गई....
राव साहब !
जवाब देंहटाएंसहज (सादा को इस अर्थ में लूं तो बुरा तो नहीं ? )
लिखना आसान नहीं होता .. इस कठिन साधना को आप
नए साल में जारी रखेंगे , ऐसी आशा / शुभकामना कर रहा हूँ ..
...... आभार ,,,
अद्भुत कहूँ यह शक्ति नहीं, जो कहता हूँ सादा कहता हूँ
जवाब देंहटाएंअजी कहाँ 'सादा'' ?? अगर आप सादा कहते हैं तो फिर डिजाईनदार कौन कहता है ???
लगे बेसवादा, अड़बड़ा, झेल लो थोड़ा जियादा कहता हूँ।
'बेसवादा' इहाँ ??? सवाल ही नहीं उठता है...हाँ 'जियादा' कह देते हैं...बाकि चलेगा...!!
विशाल है, जटिल है, कठिन है ये जिन्दगी, उतार दूँ ?
अब जैसा भी है...'टेढ़ा' है पर तेरा है...
दावे नहीं, हैं सिसकियाँ, इन्हें सुखों का लबादा कहता हूँ।
इ बात पर तो हमरी बोलती बंद हो गयी है.....महफूज़ मियाँ की बात हम भी कहते हैं बस 'छू' गयी है...
विशाल है, जटिल है, कठिन है ये जिन्दगी, उतार दूँ ?
जवाब देंहटाएंदावे नहीं, हैं सिसकियाँ, इन्हें सुखों का लबादा कहता हूँ।
जबाब नही आप की इस कविता का बहुत सुंदर.
धन्यवाद
बहुत बढ़िया!!
जवाब देंहटाएं...दावे नहीं, हैं सिसकियाँ, इन्हें सुखों का लबादा कहता हूँ।
आप न कह पाओ..हम तो आपकी रचना को अद्भुत ही कहेंगे.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर! सादगी में जो सौंदर्य है वही असली है।
जवाब देंहटाएंजो सादा कहते हैं वही दिमाग के आर पार होता है इसलिए ऐसे ही सादा कहते रहे ...
जवाब देंहटाएंबहरहाल 2009 को अलविदा कहने का रोचक अंदाज़ बहुत भाया ...!!
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जवाब देंहटाएंबात कितनी प्यारी कहनी थी..form का थोड़ा ज्यादा दबाव नही हो गया content पर..!
जवाब देंहटाएंबाप रे कह गया..मै तो लिख गया...अब क्या होगा..
बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंकठिन है, असम्भव नही
जवाब देंहटाएंजटिल है, अपराक्रम्य नहीं
विशाल है, अभेद्य नही
आप जो कहते हैं
सादा हो न हो, अद्भुत तो है ही
अड़बड़ा हो न हो, जियादा तो है नही
सुख किसने देखा है, जीवन में सिर्फ़ वादे है।
जबतक साँसें हैं तभी तक लबादे हैं।
जो सबने अपनी पीठ पर लादे हैं
खुलकर बोलिए जो भी इरादे हैं।
ये अलविदा के बोल तो बस
एक खट्टी-मीठी गोली हैं जो
कभी हँसा दे है और कभी रुला दे है।
@ सिद्धार्थ,
जवाब देंहटाएंवाह। नेट से दु:खी हूँ। दूसरों को पढ़ नहीं पा रहा। टिपिया नहीं पा रहा।
यहाँ लिखना कम करना पड़ेगा - जिम्मेदारियाँ अब झँझोड़ने लगी हैं।
अब इसमें सादा क्या है..?
जवाब देंहटाएंयह कविता यहाँ भी पढ़ी जा सकती है http://vivekanjan.blogspot.com/2010/09/blog-post_06.html
जवाब देंहटाएं"लगे बेसवादा, अड़बड़ा, झेल लो थोड़ा जियादा कहता हूँ..."
जवाब देंहटाएंकम-से-कम इसी बहाने ये अद्भुत पंक्तियाँ अछूती तो न रह गयी। ब्लौग पर मौजूद ऐसे नमूनों का क्या किया जाये कविवर?