सूर्य लिखे कुछ चंद्र गढ़े,
कुछ उल्का के नवछंद रचे ।
निज पाँवोंं पर खड़े खड़े,
हम पीड़ा के सौगन्ध रचे ॥
साँझ घिरी चन्दन चंदन,
भोग चंद्रिका वंदन वंदन,
नगरसिवाने कुटिया में,
दीप अकेला नवनीति रचे।
अधरों पर विष व्याप रहे,
आँखों में काजल काँप रहे,
कङ्कण नूपुर की धुन दूर,
अमृत भर भर गीति रचे।
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
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