रविवार, 26 मई 2013

हाथ बचाया दोना है

ये जो रोना धोना है
यूँ ही पानी खोना है। 
देवों को परसादी दे 
हाथ बचाया दोना है। 
मीठी मुस्की माशूका
माँ तो बस लोना है।

कभी ऐसा कभी वैसा
इंसाँ जादू टोना है।
चन्दा चाँदी रात भर
दिन तो बस सोना है।  
फूले थे जो सूख गये
पतझड़ काँटे बोना है।

शुक्रवार, 24 मई 2013

धूमिलोत्तर : लोहे का स्वाद


लोहे का स्वाद लोहार से न पूछो जो गढ़ता है
लोहे का स्वाद घोड़े से न पूछो जो पहनता है
लोहे का स्वाद सवार से न पूछो जो चढ़ता है।
लोहे का स्वाद उस ईमानदार से पूछो जो
कार्बन प्रतिशत सीमा से बाहर होने पर भी
ठीक दर्ज करता है, बैच पास कर खुद पर कुढ़ता है
चुप्पी का तेजाब मुँह में रख गलता है
और हर शाम खुद को सांत्वना देने को गीता पढ़ता है।


('लोहे का स्वाद' सुदामा पांडेय 'धूमिल' की अंतिम कविता है। उनसे क्षमा सहित।)


शनिवार, 18 मई 2013

ऐसे भी


चिपके केश स्वेद सने ललाट पर
उठी चुम्बन चाहना अ-काम
झिझका ठिठका सकाम सोच
तुम क्या कहोगी, लोग क्या कहेंगे
उमगा क्षार नयन द्वार टपकी बूँदें
कपोलों को ऐसे भी भीगना था -
अवशता पर!