मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

...प्रार्थना में।


ज्योतिहीन जब तनेगा वितान
और सो जायेंगी ध्वनियाँ
अनंत समय के लिये; 
मेरी अंगुलियाँ होंगी दशनेत्र 
मैं थाम लूँगा तुम्हें तम में ढूँढ़ कर
और भर दूँगा सप्तक त्वचा छूती वायु में-
मेरी देह तुम्हारी होगी। 

जीवन की लय पा लेगी अपनी स्वतंत्रता 
मैं नहीं रह जाऊँगा कारा भर और माँगूगा और 
उस दिन मैं झुकूँगा - 
प्रार्थना में।     

रविवार, 9 दिसंबर 2012

घर तो आने दो!


न दोष दो इन आँखों को न गाल पसरी बेशर्म लाली को
है खास कुछ इस जगह में, हवाओं में भी कुछ जहर है।

आँखें होंगी पाक गाल होंगे सफेद फिर, घर तो आने दो!

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

राग घरनी

नत ललाट पर बिखरी अलकें
प्राची में सिन्दूर लगे
नयन सरोवर पुरइन भँवरे
कपोल पराग छू छिड़क भगे
हाथों के अर्घ्य अमर 
जूठे बासन धो गंगाजल
अन्न अग्नि आहुति सहेज 
चूड़ियों ने कुछ सूक्त पढ़े।

नेह समर्पण भावों का ज्यों
मिथकों के अम्बार गढ़े
रुँधे गले कुछ कह न पाये
मौन शब्द आभार पढ़े
ओस सजी दूब फिसलती
आँखों में आराधन है
क्षितिज मिलन के नव्य मधुर
साँसों में ओंकार जगे।
________________

एक रंग यह भी: 

भोजन छ्न्द