ज्योतिहीन जब तनेगा वितान
और सो जायेंगी
ध्वनियाँ
अनंत समय के लिये;
मेरी अंगुलियाँ होंगी दशनेत्र
मेरी अंगुलियाँ होंगी दशनेत्र
मैं थाम लूँगा
तुम्हें तम में ढूँढ़ कर
और भर दूँगा
सप्तक त्वचा छूती वायु में-
मेरी देह तुम्हारी होगी।
मेरी देह तुम्हारी होगी।
जीवन की लय पा
लेगी अपनी स्वतंत्रता
मैं नहीं रह
जाऊँगा कारा भर और माँगूगा और
उस दिन मैं झुकूँगा -
प्रार्थना में।
उस दिन मैं झुकूँगा -
प्रार्थना में।