तुम्हें
बचाने को।
आखेटकों को शाक्य सिंह बनाने को।
मैंने
इस पृष्ठ पर कविता रची है
अगले पर एक नारा
उससे आगे एक नाटक
उसके पीछे एक ढपली।
देखो न!
क्रान्ति होने को है।
आखेटकों को शाक्य सिंह बनाने को।
मैंने
इस पृष्ठ पर कविता रची है
अगले पर एक नारा
उससे आगे एक नाटक
उसके पीछे एक ढपली।
देखो न!
क्रान्ति होने को है।
आँखें नहीं
खुल रहीं?
द्रव पात्र में एक कैपशूल कम डालना था न
अलुमिनियम पट्टी से दो कस कम सूँघने थे
•••
दूर हटो सूअर कहीं के
सारे मर्द भेंड़िये होते हैं
मल भरे मन वाले।
होते कौन हो तुम मेरा चषक
मेरी पन्नी सूँघने वाले?
•••
क्रान्ति तब मानी जायेगी
जब ऐसे में भी मुझे कोई न छुये।
छूना मत मुझे
नीच!
यू मेल सुविनिस्ट!
यू मेल सुविनिस्ट!
बस घर पहुँचा
दो
पाँव जमीं पर नहीं मेरे
देखो मुझे उड़ते हुये।
पाँव जमीं पर नहीं मेरे
देखो मुझे उड़ते हुये।
जलो कि मैं
आजाद हूँ -
घर तक छोड़ दो मुझे रास्कल,
इतनी भी सभ्यता बची है या नहीं?
----
है कालिदास के रघुवंश में
वह कठोर राज, दण्ड आदर्श।
घर तक छोड़ दो मुझे रास्कल,
इतनी भी सभ्यता बची है या नहीं?
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है कालिदास के रघुवंश में
वह कठोर राज, दण्ड आदर्श।
आभूषणों से लदी मदमत्त स्त्री अकेली
वारांगना
रात भर खुले में पड़ी रही
किसी ने कुछ न चुराया
न लूटा।
बन्द करो अपनी नोटबुक
जाओ! ले आओ
कालिदास सा कवि
दिलीप सा शासक,
तब तक मुझे पीने दो।
दिलीप सा शासक,
तब तक मुझे पीने दो।
घर स्थगित
है।
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(दिलीप के राज्यानुशासन की महिमा बताते सुनन्दा वह कहती है जो आज कल के उन्नत समाज के लिये आदर्श कहा जा सकता है।
उनका शासन ऐसा था कि स्वच्छंद यौन स्वभाव वाली स्त्री भी यदि रात भर विहार के पश्चात बेसुध बीच मार्ग पर श्रांत पड़ी हो तो चोर या पतित तो हाथ लगाने से रहे, उसके वस्त्रों को वायु तक नहीं हिला सकती थी!
यस्मिन्महीम् शासति वाणिनीनाम् निद्राम् विहारार्धपथे गतानाम्।
वातोऽपि नास्रंसयदंशुकानि को लम्बयेदाहरणाय हस्तम्॥)
उनका शासन ऐसा था कि स्वच्छंद यौन स्वभाव वाली स्त्री भी यदि रात भर विहार के पश्चात बेसुध बीच मार्ग पर श्रांत पड़ी हो तो चोर या पतित तो हाथ लगाने से रहे, उसके वस्त्रों को वायु तक नहीं हिला सकती थी!
यस्मिन्महीम् शासति वाणिनीनाम् निद्राम् विहारार्धपथे गतानाम्।
वातोऽपि नास्रंसयदंशुकानि को लम्बयेदाहरणाय हस्तम्॥)
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'उत्कृष्ट
सौन्दर्यबोध' और 'मातृपक्ष के प्रति
अगाध सम्मान' - इन दो की साधना जब तक 'स्त्री
पुरुष दोनों' नहीं करेंगे, जब तक
उन्हें अस्तित्त्व का अनिवार्य भाग जैसा नहीं कर दिया जायेगा, तब तक स्थिति सुधरने से रही।
छोड़िये, मैं भी क्या ले कर बैठ गया! ये पढ़िये, सुनिये और देखिये:
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सीढ़ियों पर चढ़ती और उतरती मानव देह के सौन्दर्य के तीन दृश्य:
(1) कालिदास: रघुवंश:
काकुत्स्थ कुमार अज स्वयंवर आयोजन में स्थान ग्रहण करने जा रहे हैं। ऐसे समय में पुरुष सौन्दर्य का संभवत: यह इकलौता वर्णन हो।
वैदर्भनिर्दिष्टमसौ
कुमारः कॢप्तेन सोपानपथेन मञ्चम्|छोड़िये, मैं भी क्या ले कर बैठ गया! ये पढ़िये, सुनिये और देखिये:
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सीढ़ियों पर चढ़ती और उतरती मानव देह के सौन्दर्य के तीन दृश्य:
(1) कालिदास: रघुवंश:
काकुत्स्थ कुमार अज स्वयंवर आयोजन में स्थान ग्रहण करने जा रहे हैं। ऐसे समय में पुरुष सौन्दर्य का संभवत: यह इकलौता वर्णन हो।
शिलाविभङ्गैर्मृगराजशावस्तुङ्गम् नगोत्सङ्गमिवारुरोह॥ (ऊँचे मंच पर पहुँचने के लिये सीढ़ियों पर चढ़ते कुमार अज ऐसे लग रहे हैं जैसे कोई सिंह शावक पर्वत शिखर पर पहुँचने के लिये तराशे पत्थर के सोपान चढ़ रहा हो।)
(2) दानिश:
सुन्दर कोमलांगी दुल्हन विवाह हेतु सजने के पश्चात छत से नीचे उतर
रही है।
बाम से उतरती है
जब हसीन दोशीज़ा
जिस्म की नज़ाक़त को सीढ़ियाँ समझती हैं।
जिस्म की नज़ाक़त को सीढ़ियाँ समझती हैं।
हुसैन बन्धुओं ने
इस ग़जल को गा कर अमर कर दिया।
https://www.youtube.com/watch?v=o7eNtz4INL0
https://www.youtube.com/watch?v=o7eNtz4INL0
(3) टाइटेनिक
में सीढ़ी चढ़ती रोज का स्वागत डॉसन करता है - "I saw that on A
Nickelodeon and I always wanted to try it."
Beautiful ! Thanks for sharing
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