फाग महोत्सव में अब तक: (1) बसन तन पियर सजल हर छन (2) आचारज जी (3) युगनद्ध-3: आ रही होली (4) जोगीरा सरssरsर – 1 |
आज पुरानी डायरी उठाया - यह देखने के लिए कि फाग से सम्बन्धित कुछ मिल जाय। निराश हो ही रहा था कि एक टुकड़ा नीचे गिरा, देखा, आस बँधी, पढ़ा और फिर ... कुछ मिला था लेकिन शिकायत भरा। कागज का वह टुकड़ा फाड़ कर अलग से डायरी में रखा था। देखने से लगता है कि दूसरी डायरी का अंश है। उस पर 12 मार्च दिन सोमवार अंकित है। समय सन्दर्भ के लिए पलटा तो अनुमान लगाया कि बात 1993 की होनी चाहिए (ज्योतिषी लोग ही बता पाएँगे कि ऐसे दिन होली कब पड़ी होगी, ये बात तो पक्की बता सकते हैं :))। एक सम्भावना यह भी है कि उस संवत में मैंने पुरानी डायरी बस दिनांक मिलाते हुए प्रयोग किया होगा। मध्यमवर्गी युवक उपहार में मिली डायरियों को ऐसे उपयोग में लाते रहे हैं। अस्तु..
अपनी तमाम डायरियाँ मैंने नष्ट कर दीं लेकिन इस टुकड़े को उस समय भी बचा लिया था।.. शिकायत पर हँसी आई। आदमी का मन भी अजीब होता है - जैसा खुद रहता है, आस पास भी वैसा ही ढूँढ़ लेता है। सुना है कि मिस्री पिरामिडों के शिलालेखों में भी ऐसी बाते पाई गई हैं जो कहती हैं कि ज़माना दिन ब दिन खराब होता जा रहा है। युवक उच्छृंखल होते जा रहे हैं... वगैरा वगैरा।
..नष्ट की जा चुकी उस डायरी के इस बचे अंश में गाँव की होली के बारे में यह लिखा है:
..नष्ट की जा चुकी उस डायरी के इस बचे अंश में गाँव की होली के बारे में यह लिखा है:
होली। उत्साह और प्राकृतिक ग्रामीण ढंग का आनन्द दिनों दिन कम होता जा रहा है। |
उसके बाद दूसरे रंग की पेन से यह कविता है जिसमें पेंसिल से किए संशोधन भी दिखते हैं। साझा कर रहा हूँ:
ढोलक की थाप गई चउताल की ताल के गीत सारे बह गए।
रंगों की ठाठ गई, भाभियों के बोल अजाने जाने क्या कह गए।
बदल गए लोग बाग, बदली बयार अब, मीत सारे मर गए।
कचड़ा अबीर भया, भंग के रंग गए, मस्ती के बोल अबोल ही रह गए।
जाने क्यों आशंका सी उठ रही है - इस बार कहीं हिन्दी ब्लॉगरी की होली भी ऐसी न हो जाय ! ... धुत्त जोगीरा ।
धुत्त जोगीरा ।
जवाब देंहटाएंशुभ शुभ बोलें..बाकी देख लिहल जाई..
इस बार की होली ऐसी न हो शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंwaah !
जवाब देंहटाएंdekh raha hun silsila thamne - sa laga hai ......
vigat par vihangaawlokan chaloo aahe !!! aabhaar !
अपनी तमाम डायरियाँ मैंने नष्ट कर दीं...
जवाब देंहटाएंकाहे भैया?
कविता बहुत पसंद आई. ब्लॉग जगत की आपकी चिंता का जवाब पिरैमिड काल के आपके ही कथन ने दे दिया है. मतलब यह कि आना-जाना कम-बढ़, ऊँच-नीच सब लगा रहेगा.
हाँ बदलाव तो है और भयंकर बदलाव है और गिरिजेश भाई गंधमादन पर्वत पर धूनी रमाकर बैठ गए हैं तो मामला बहुत ख़ास ही है -अमरेन्द्र क्या यग्य विध्वंस कर सकेगें -आज वे कई संज्ञाओं से नवाजे गए हैं अतः कर तो सकते हैं ,और हाँ यग्य के सकुशल पूर्ण होने पर मदनामृत का वितरण हो जाय तभी अभीष्ट पूरा हो पायेगा और मृतक भी शायद पुनर्जीवित हो उठें -जो भीहो वसंत सेना अपनी ही है न !
जवाब देंहटाएंधुत्त जोगीरा ...
जवाब देंहटाएंई का उल्टा-पलटा लिखा रहा है...
रंग में भंग....का मसला बुझाता है...
कोई बात नहीं...
हिम्मत रखिये सब ठीक होगा...:)
अब सब लोग कह रहे हैं...
जवाब देंहटाएंतो ठीक हे रहेगा...
हमारा मन तो इस बात पर अटक गया है कि डायरियाँ क्यों नष्ट कर दीं ? कुछ इस पर भी.... अगर बताने लायक हो तो ..।
जवाब देंहटाएंMujhe bhi apna khud ka blog shuru karna hai. Kaise karu?
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