जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।
'' .. फाग आग आँच नरम हुई कड़ियाँ - फिर टूटीं।'' ------- आचारज को पता था कि नरम कड़ियाँ तो टूटेंगी ही , पर इस तरह ! . '' पसर गया प्रेम शब्द शब्द आखर आखर। ... तूने क्या, कैसे, क्यों बाँध रखा था ?'' ---------- इतना भी लजाना शोभा नहीं देता आप से बाऊ-बौद्धिकों को ! बंधन खुला , आनंदार्द्र हुए फिर 'तर्क' क्यों ! . जयशंकर प्रसाद की तरह मैं भी कह रहा हूँ ---- '' बिखरी अलकें ज्यों तर्क-जाल '' . छह ठो लाइन में कमाल किये हो बाऊ !
कर गई मस्त मुझे फागुन की हवा,
जवाब देंहटाएंमैं लगा झूमने, मुझे ये क्या होने लगा...
(गिरिजेश भाई, घबराइए नहीं अभी भांग नहीं चढ़ाई है...)
जय हिंद...
अहा! बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंफ़ागुन का रंग चढ़ने लगा है, क्यों बाँध रखा था? सोच रहे हैं..!!
जवाब देंहटाएंhmmmmmmmmmmmmmmmmm
जवाब देंहटाएंपूछते हो क्यों ऐसा सवाल
जवाब देंहटाएंजवाब जिसका
तुम्हें ही मालूम है
शायद
सिर्फ़ तुम्हें
बड़े लंठ हो जी...
फाग आग आँच
जवाब देंहटाएंपसर गया प्रेम
तो प्रश्न क्यों!
नाच.
पसर गया प्रेम ....वाह ...
जवाब देंहटाएंतभी फूटी फाग वाणी बड़े दिनों बाद ...:)
वाणी के स्थान पर कोई उपयुक्त समानार्थी शब्द सुझाएँ ....!!
फ़गुनिया रहे है.. :)
जवाब देंहटाएं'' .. फाग आग आँच
जवाब देंहटाएंनरम हुई कड़ियाँ
- फिर टूटीं।''
------- आचारज को पता था कि नरम कड़ियाँ
तो टूटेंगी ही , पर इस तरह !
.
'' पसर गया प्रेम
शब्द शब्द आखर आखर।
... तूने क्या, कैसे, क्यों बाँध रखा था ?''
---------- इतना भी लजाना शोभा नहीं देता आप से
बाऊ-बौद्धिकों को ! बंधन खुला , आनंदार्द्र हुए फिर 'तर्क' क्यों !
.
जयशंकर प्रसाद की तरह मैं भी कह
रहा हूँ ---- '' बिखरी अलकें ज्यों तर्क-जाल ''
.
छह ठो लाइन में कमाल किये हो बाऊ !
अरे! बहुत सही....
जवाब देंहटाएंWaah! bahut sundar...Aabhaar!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
बेहतर...
जवाब देंहटाएंकिसने बांध रखा था सब झूंठ है कहने की बात
जवाब देंहटाएंअरे बहुत बांध रखा है हमने... कहाँ टूटता है. प्रेम का बंधन भी तो है भाई, क्यों?
जवाब देंहटाएंक्या, कैसे का मामला नहीं, क्यों का तो बनता ही है ।
जवाब देंहटाएंयही तो है आपकी पहचान ! निपट अकेली !