चौंक मत गर कहूँ कि
तू जो गा दे संग
तो फाग होली गुलाल हो
इस वक़्त न दिखा ये अंदाजे बयाँ
कि कल दिल में मलाल हो -
जो कहना था जिस वक़्त न कहे
शेर कहते रहे जब लगाने थे कहकहे।
माना कि बहुत रंग हैं तेरी इबारत में
हर्फ ही न रंगे इस मौसम तो क्या कहे।
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आचारज जी टाइप लोगों से अनुरोध है कि रंग में तंग न डालें। इस समय उनकी कोई बात नहीं सुनी जाएगी।
हर्फ ही न रंगे इस मौसम तो क्या कहे।
जवाब देंहटाएं-सही कहा..क्या बात है.
आचारज जी टाइप लोगों से अनुरोध है कि रंग में तंग न डालें। इस समय उनकी कोई बात नहीं सुनी जाएगी।
जवाब देंहटाएं-इन लोगों की कोई लिस्ट धरे हों तो जरा बताया जाये. :)
भैया तब तो हम पढ़ के चुप्पे से फूट ले रहे हैं। कहीं एकाध छपकारा हमहूँ न खा जाँय। :)
जवाब देंहटाएंबढिया रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंमाना कि बहुत रंग हैं तेरी इबारत में
जवाब देंहटाएंहर्फ ही न रंगे इस मौसम तो क्या कहे।
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ....
जोगीरा सा रा रा रा रा रा रा रा ....... (इसको बिना मतलब में जोड़ दिए हैं.... फगुनिया गए हैं हम..... )
माना कि बहुत रंग हैं तेरी इबारत में
जवाब देंहटाएंहर्फ ही न रंगे इस मौसम तो क्या कहे।
kya baat hai !!
bahut hi sundar rachana ....Aabhar!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
गर तू जो गा दे संग तो फाग गुलाल हो जाए
जवाब देंहटाएंन दिखा ये अंदाज़-ए-बयाँ, दिल में मलाल हो जाए
आपके ख्यालों का ज़खीरा बहुत पसंद आया है..
क्यूँ आपने कुछ हमख्यालों को भगाया है ???
ये सारे शेर नहीं बब्बर शेर हैं ..:):)
वाह ! वाह ! क्या बात है !
जवाब देंहटाएंक्या खूब कही !
स्वागत है..!
ऐसे ही..!
किसे पुकारा जा रहा है इतनी शिद्दत से ....वो आये तब तक हम ही सुना देते हैं एक शेर ...
जवाब देंहटाएंपतझड़ में खिला जो हो उसे बहार की जरुरत क्या है
हर्फ़ रंगने हो मुहब्बत से तो रंगों की जरुरत क्या है...
एकदम रापचीक !
जवाब देंहटाएंमस्त है।
पहले शीर्षक को साफ-सूफ समझाइये ! आधा-तिहा समझ कुछ कह देंगे तो कहेंगे कि कहता हूँ !
जवाब देंहटाएंहर्फ रंगने हों मुहब्बत से तो रंगों की क्या जरूरत है ! ....
जवाब देंहटाएंयह तो सोचने वाली बात है !
बतियाँ हमरी समुझ न पाएँ बउराए आचारज जी
जवाब देंहटाएंरंग रंग में फरक होत है, घबराए आचारज जी
।
काला मोबिल पोत वदन पर फगुनाए आचारज जी
हमरे रंग को रंग न समझें दुखियाए आचारज जी।
हाँ जोगीरा स र र र र र र
फाग - बाज बाऊ को झाऊ - भर
जवाब देंहटाएंबसंत मुबारक रहे ,,,,, पर ,,,,,,,,,
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कविवर - मृत्यु - घोषणा कैसे कर सकता कोई , धिक्कार !
हे बाऊ ! तुम हर्फ़ ही रंगों , कठिन है अर्थों का व्यापार ||
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@ ई बात नहीं समझेंगे महराज !
आखिर तुडवा ही दिया न मेरा ब्लॉग व्रत भाऊ !
जवाब देंहटाएंयहाँ की टिप्पणी वहां देखी जाय
तनिक महफूज का भी ख़याल रखें ....
मुक्तछन्दी.... आप हैं बहुधन्दी..
जवाब देंहटाएंरंग में तंग नहीं भंग डालो...
जवाब देंहटाएंभांग छानकर जब लिखबा ता लिखबा ऊंची चीज
भांग में बहुत मजा हौ.
sundar :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर पंक्तियाँ....
जवाब देंहटाएंशेर पर झूमे तो बहुत शे'र पर मगर कुछ न कहा !
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