(1)
फागुन ने चूमा
धरती को -
होठ सलवट
भरा रास रस।
भिनसारे पवन
पी गया चुपके से -
.. खुलने लगे
घरों के पिछ्ले द्वार ।
(2)
फागुन की सिहरन
छ्न्दबद्ध कर दूँ !
कैसे ?
क्षीण कटि -
गढ़न जो लचकी ..
कलम रुक गई।
(3)
तूलिका उठाई -
कागद कोरे
पूनम फेर दूँ।
अंगुलियाँ घूमीं
उतरी सद्यस्नाता -
बेबस फागुन के आगे।
(4)
फागुन उसाँस भरा
तुम्हारी गोलाइयों ने -
मैं दंग देखता रहा
और
मेरी नागरी कोहना गई ।
लिखूँगा कुछ दिन
अब बस रोमन में -
तूलिका उठाई -
जवाब देंहटाएंकागद कोरे
पूनम फेर दूँ।
अंगुलियाँ घूमीं
उतरी सद्यस्नाता -
बेबस फागुन के आगे।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ....
फागुन की सिहरन
जवाब देंहटाएंछ्न्दबद्ध कर दूँ !
कैसे ?
क्षीण कटि -
गढ़न जो लचकी ..
कलम रुक गई।
-वाह!! सभी उम्दा!!
शुक्र मनाइए नागरी खाली कोहना गई गई....
जवाब देंहटाएंझाडू-झउवा नहीं ले आई ...
और आप रोमन से बहुते चिढ़ते हैं...इसी लिए कह दी होंगी ...आज के बाद खाली रोमन में लिखना है....बढियां सजा मिला है आपको...हाँ नहीं तो...:):)
पंजाबन, बंगालन, मद्रासन, मराठन,गुजरातन तो सुना था
जवाब देंहटाएंलेकिन रोमन ??
लगता है फागुन जोर में है :)
बोल जोगीरा सारा रारा.......
मस्त लिखा है। एक दम झकास।
चारों मोटी करेजवा में रख लिया भाई !
जवाब देंहटाएंफागुन में बबा देवर लागी .
जवाब देंहटाएंक्या खूब चड़ा है रंग फागुन का.............
सुन्दर फागुनी रचना...आभर!!
जवाब देंहटाएंफागुन की सिहरन
जवाब देंहटाएंछ्न्दबद्ध कर दूँ !
कैसे ?
क्षीण कटि -
गढ़न जो लचकी ..
कलम रुक गई।
अच्छी लगी ये पंक्तियाँ !
गोलाइयाँ उसाँस लें तो नागरी बहक-सहक जाये,कोहनाये क्यों ? गोलाइयों से तो सजती है उसकी देंह !
जवाब देंहटाएंरोमन निपट तिरपट - फागुन में उसकी कैसी प्रीति !
उल्टा-सुल्टा लिख कर फगुनाई में भाव-ताव टाइट करते हैं ! ठीक नहीं यह !
उतरी सद्यस्नाता -
जवाब देंहटाएंबेबस फागुन के आगे।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ.