(1)
गए हाट गुलाल मोलन को
तोहें देखे, पुनि देखे लाली तोहार
हाथ पकड़ तोहे खींच लाए
रह गयो मोल अमोलन ही।
पलखत देख जो रगड़े गाल -
तुम वैसे ही लाल
रगड़ाय के लाल
लजाय के लाल
तोरी तिहरी लाली देख निहाल
हम हो गए लाल
लाल लाल -
बिन गुलाल के लाल।
(2)
काहे सखियन बीच मोहे बदनाम करो -
हम नाहिं तोरे तोहरी अँगिया के बन्ध
साँच कहो, बिन शरमाय कहो
देख के हमको जो ली उसाँस
अँगिया खुली सब बन्ध गयो -
आन मिलो कुंज गलिन
भिनसारे सँकारे साँझ अन्हारे
कर देब पूरन तोरे मनवा के आस
हौं खुलिहें अँगिया खुलिहें
सब खुलिहें
जब दुइ मन खिलिहें
खुलिहें।
(3)
मधु रात भली
बड़ि बात चली
जो जागे सगरी रैन,
रहे सोवत
बड़ी देर भई।
देख सभी मुसकाय हँसें
हड़बड़ जो दुआरे गए -
आरसि दिखाय चतुर हजाम
वदन कजरा दमके सेनुरा।
ठठाय हँसे पुनि देख के सब
हम पहने रहे सलवार
का तुम पहिरी हमरो पैजामा?
शानदार....बहाते रहें फागुनी बहार!
जवाब देंहटाएंयह एक ही भारी था तीन तीन .....
जवाब देंहटाएंसलवार और पैजामा की जुगलबंदी -और फिर अदलाबदली -कहाँ मारते हैं बेलो डी बेल्ट
जवाब देंहटाएं..का तुम पहिरी हमरो पैजामा?
जवाब देंहटाएंगजब भयो रामा जुलुम भयो रे..
होली कs रंगवा दुगुन भयो रे..
गज़ब भयो रामा जुलुम भयो रे..
पढ़ी के लागा सगुन भयो रे..
गज़ब भयो रामा जुलुम भयो रे...
...मस्त है!
बहुत सुंदर! आनंद की सृष्टि कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंवदन कजरा दमके सेनुरा।
जवाब देंहटाएंठठाय हँसे पुनि देख के सब
हम पहने रहे सलवार
का तुम पहिरी हमरो पैजामा? ..
भंग वाला फागुनी रंग ,बेहतरीन लगे सब .
हम भी.....आनंद की सृष्टि कर रहे हैं.....
जवाब देंहटाएंहम पहने रहे सलवार
जवाब देंहटाएंका तुम पहिरी हमरो पैजामा?
फागुन की हवा ही कुछ ऐसी ही होती है
होली की ढ़ेर शुभकामनायें. समय मिले तो पढ़िये,
जवाब देंहटाएंhttp://epankajsharma.blogspot.com/ पर
''लला फिर आइयो खेलन होरी``
यह ब्लॉग तो पूरा ब्रज ही हो गया है ! कवि स्वयं कृष्ण बना पंक्ति रूपी गोपिकाओ को रास -भाव रंग से रंग रहा है !
जवाब देंहटाएंहाँ अभिषेक, सही कहा - कन्हइया फागुन में राधा भी हो गये हैं । भाव-परिवर्तन का सहज उदाहरण !
जवाब देंहटाएंपाजामे और सलवार में भेद ही कितना है !
आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
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