चेताते मस्तिष्कों को
बन्द कर आलमारी में,
अनावृत्त हो दिगम्बर
चलो सपनों में रंग भरें।
मूर्खताएँ हसीन हैं
न खुश न कोई गमगीन है।
बेहिसाब नहाई तिजहर में
चलो सड़क पर खेलें -
इक्कुड़ दुक्कुड़
आइस पाइस।
चलो किसी राहगीर को
यूँ ही चिढ़ाते भाग चलें।
छ्न्द में कुछ वर्ण अधिक हैं
कुछ मात्राएँ कम हैं।
चलो यूँ करें
कविता फाड़ दें
टुकड़े गिलास में फेंट दें
फिर जमाएँ
निकाल कर एक एक अक्षर।
फिर कोई सीरियल देख लें
डायलॉग ऐसे ही तो बनते हैं!
अच्छा ऐसा करते हैं
आज के अखबार में केवल
विज्ञापन पढ़ते हैं
सभी विज्ञापन।
तुम स्टॉप वाच चालू करो
देखते हैं कौन पहले खत्म करता है?
"अबे, खत्म होने को कौन सर्टिफाई करेगा?"
"कहना ही मान लिया जाएगा।"
"ये सब क्या है?
ये बकबक क्यों कर रहे हो।"
"मुझे कुछ भुलाना है -
- घूरे पर फेंकी गई नवजात कन्या।
- बलात्कार के बाद मार दी गई
आई सी यू में भर्ती लड़की।
- पंचायत की आँख सेंकने को
न्याय करने को
उघार दी गई औरत।
- खुद को बेंचने के बाद
जाने क्या बचाने को
ऊँचे फ्लैट से कूद गई युवती।
- ईश निन्दा के आरोप में
हाथ कटाने वाला इंसान ..."
"भोले हो!
भुलाने से क्या होगा?"
"कुछ नहीं। कुछ भी नहीं।
लेकिन
सपने बचेंगे
रंग भरेंगे
खेलेंगे
चिढ़ाएँगे
सीरियल देखेंगे ...
मैं बच तो जाऊँगा।
क्या यह कम है?"
"तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है।"
चलो! सिगरेट पी आते हैं।
बेहतर है यह काम
कहीं माचिस लगाने से।
"तुम पागल हो।"
आपकी लंबी कविताओं की याद आ गयी...!
जवाब देंहटाएंटिप्पणी नही कर रहा हूँ.!
मैं भी टिपण्णी नहीं कर रहा हूँ....
जवाब देंहटाएंकविता बहुते अच्छी लगी...
आक्रोश ने शब्दों का आकार ले लिया है।
जवाब देंहटाएंयह टिप्पणी नहीं, मन के उद्गार थे।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
नहीं चाहिये, लीजिये बिना दिये ही जा रहे हैं।
आभार! (यह तो ले ही लीजिये...प्लीज)
...
ठीक है नही देंगे !
जवाब देंहटाएंकाहे नहीं टिपियायेंगे...
जवाब देंहटाएंये सारे जख्म
भुलाने से भुलाये तो नहीं जायेंगे ...
मगर ...
हम जो गायेंगे , गुनगुनायेंगे ,
किसी दिल में तो आस जगा जायेंगे ...
इसके बाद भी जीवन है ...
अँधेरे में एक किरण रौशनी सी
राजा के महल में से आती उस रौशनी सा
जिससे उस बूढ़े ने पूरी रात ठण्ड में ठिठुरते
ठन्डे पानी के बीच काट दी थी ...
वीर तुम बढे चलो ...धीर तुम बढे चलो ..सामने पहाड़ हो ..सिंह की दहाड़ हो
जवाब देंहटाएंतुम कभी रुको नहीं तुम कभी थको नहीं ..टिप्पणी या नो टिप्पणी !
सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती ,टिपण्णी तो हर ब्लॉग पढने वाला करता है कोई लिखकर कोई बिना लिखे ..लिखने से (लेखक)आपको भी पता चलता है और नहीं लिखने से आपको(लेखक) पता नहीं चलता है ...
जवाब देंहटाएंमत लीजिए जी ..वापस कर दीजिए :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंटिप्पणी नहीं चाहिए। No comments please!
जवाब देंहटाएं""तुम पागल हो।""
:) :)
मत लो फिर्।
जवाब देंहटाएं..
जवाब देंहटाएंये टिप्पणी नहीं है।
………….
गणेशोत्सव: क्या आप तैयार हैं?
यह टिप्पणी नहीं है...
जवाब देंहटाएंचलो सिगरेट पी ही लेते हैं...
मैँ टिप्पणी नहीँ दे रहा हूँ। मैँ तो आभार दे रहा हूँ जी। बहुत बढ़िया लगा। -: VISIT MY BLOG :- जब तन्हा होँ किसी सफर मेँ। ............. गजल को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।
जवाब देंहटाएंकविता तो आपने अच्छी लिखी है, मगर टिपण्णी नहीं करूँगा, आप चाहे कुछ भी कहो.
जवाब देंहटाएंo.k
जवाब देंहटाएंन हम लेते हैं टिप्पणी न देते हैं...
जवाब देंहटाएंकौन जाने कब, कौन, कहाँ, कैसे, क्यूँ और काहे , वापिस माँग लेवे...
इस हेतू ...न उधो का लेना न माधो का देना ...ई ब्लॉग जगत हमको बहुत कुछ सीखा गया है...आप भी सीख रहे हैं ऐसा बुझाता है...
:):)
हाँ नहीं तो...
अच्छा ठीक है टिपण्णी नहीं चाहिए तो इसे हमारे ब्लॉग पर आकर लौटा दीजिये...
जवाब देंहटाएंकैसी रही :)
आप की रचना 10 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
टिप्पणी के प्रति ऐसा काव्यात्मक वैराग्य पहली बार देख रहा हूँ !
जवाब देंहटाएंलग रहा है कि अधूरे प्रेमपत्र के विवेकानंद यहाँ अनासक्त बना रहे हैं !
बाकी ब्लाग्बुड वैरागी न बनाए तो समझिये कुछ सीखा ही नहीं ! हमहूँ तो उतान हैं ! आभार !
टिप्पणी नहीं..पुष्प अर्पण समझें इसे..
जवाब देंहटाएंघूरे पर फेंकी गई नवजात कन्या।
जवाब देंहटाएं- बलात्कार के बाद मार दी गई
आई सी यू में भर्ती लड़की।
- पंचायत की आँख सेंकने को
न्याय करने को
उघार दी गई औरत।
- खुद को बेंचने के बाद
जाने क्या बचाने को
ऊँचे फ्लैट से कूद गई युवती।
- ईश निन्दा के आरोप में
हाथ कटाने वाला इंसान ..."
"भोले हो!
भुलाने से क्या होगा?
संवेदनशील अभिव्यक्ति ....क्या इतनी संवेदनाएं भुलाई जा सकती हैं ?
कैसे नहीं चाहिए ......हम कौन से आम आदमी हैं जो आपने कहा और मान लिया ..एक हिंदी ब्लॉगर होने के नाते हमारा ये पहला और आखिरी भी परम कर्तव्य है कि ..........हें हें हें ..टिप्पणी जरूर करें । चलिए मारिए गोली इसे ।
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी ...लगता है इन दिनों आलस थोडा कम हुआ है...........बने रहिए
aise pagalon kee hee to kamee hai.man hota hai, main bhee thoda pagalaa jaaoon aur jab koi pagala jaataa hai to kisee kee baat nahee sunata hai. tippadee naheen chahiye tab bhee tippadee deta hai. vahee kaam to kar raha hoon. mujhe paagal hee rahane do ki ham paagal hee achchhe hain. aap kaa pagalpan pasand aayaa.
जवाब देंहटाएंtum pagal ho...
जवाब देंहटाएंmain bhi pagal hoon,
bas isiliye, ek pagal ne kaha "tippani nahi chahiye"
dusre pagal ne kaha
"pagalpanti bhi zaroori hai" to tippani bhi zaroori hai.
ek sunder prastuti, bas padhkar bhool jata kash...
par pata nahi, ek bar main itni batein koi kaise bhula sakta hai... sach main pata nahi.
.
जवाब देंहटाएंye kya?
जवाब देंहटाएं