तुम मिली।
अशेष
सभी कामनाएँ।
मेरी दृष्टि में
अब कोई क्षितिज नहीं।
थोड़ा ठहर मेरी महबूब!
वो बारिश भीन लेने दे।
हर्फ सूख तो लें
जो खतूत फिर से लिखें।
वो ठिठुरन अभी तक है
साँसों की सरगम
दुश्वारियाँ हैं
वो बारिश भीन लेने दे।
हर्फ सूख तो लें
जो खतूत फिर से लिखें।
वो ठिठुरन अभी तक है
साँसों की सरगम
दुश्वारियाँ हैं
ज़िन्दगी है दहकती
तुम्हारी महकती साँसों से
आहें बहकतीं।
उन्हें थाम तो लूँ
थोड़ा ठहर मेरी महबूब!
भोर को भीन लेने दे।
भीन लेने दे
मैं अब भी वही हूँ -
उन्हीं सीढ़ियों पर।
धुन्ध
अब भी टपके जा रही है
टप! टप!!
टप! टप!!
थोड़ा भीन लेने दे।
थोड़ा ठहर लेने दे।
तुम्हारी महकती साँसों से
आहें बहकतीं।
उन्हें थाम तो लूँ
थोड़ा ठहर मेरी महबूब!
भोर को भीन लेने दे।
भीन लेने दे
मैं अब भी वही हूँ -
उन्हीं सीढ़ियों पर।
धुन्ध
अब भी टपके जा रही है
टप! टप!!
टप! टप!!
थोड़ा भीन लेने दे।
थोड़ा ठहर लेने दे।
आचार्य रजनीश ने कहीं एक चीनी चित्रकार का उल्लेख किया है। वह चित्रकार अपने चित्र पर इतना मुग्ध हुआ कि उसी में खो गया। हाड़ मास कुछ न बचा।
जवाब देंहटाएं... कहते हैं बावरी मीरा भी अपने कान्हा की प्रतिमा में समा गई।
मेरे मस्तिष्क के दो भाग हैं। एक कहता है कि यह सब कोरी गप्प है। दूसरा कहता है - आह! क्या बात है। काश! ऐसा फिर कभी कहीं हो पाता।
दुविधा से बाहर आकर एक मार्ग (सत्य का) तो पकडना ही पडेगा। अब चीन के बारे में क्या कहा जाये? ओशो के बारे में ज़रूर कह सकता हूँ "नो कमेंट्स"। बचीं मीरा, वे तो प्रभुमय ही हैं, अराध्य हैं। उनकी सिर्फ एक बात मुझे भी रखनी है कभी।
जवाब देंहटाएंतुम मिली।
जवाब देंहटाएंअशेष
सभी कामनाएँ।
मेरी दृष्टि में
अब कोई क्षितिज नहीं।
Bahut Sundar Girijesh ji !
..यह पवित्र बेला। सुखानिलोsयं काल:। कोई विश्वामित्र नहीं जो रवि ऊर्मियों की प्रतीक्षा में ऊषा से अमृत बिखेरने को कहे। नक्षत्रों की गुप्त मंत्रणा जारी है और ऊषा आँचल में मुँह छिपाए कहीं फिर रही है। हर तरफ है बस तुम्हारे प्रेम की धुन्ध। बरस रहा है – टप, टप, टप। ..
जवाब देंहटाएं..ऐसे में कविताएँ झरती हैं तो कोई अचरज नहीं, बारिश की बूदें के साथ..टप, टप, टप।
..बहुत सुंदर।
किसी -किसी का मिलना ऐसा ही भर देता है ...
जवाब देंहटाएंफिर कोई कामना नहीं , कोई लालसा नहीं ...
पास नहीं ,फिर भी दूर नहीं ...
तुम मिली।
अशेष
सभी कामनाएँ।
मेरी दृष्टि में
अब कोई क्षितिज नहीं।
मीरा आपकी इन पंक्तियों में ही तो समाई है ....
कल्पना हो तो भी !
अद्भुत!
जवाब देंहटाएंबड़ी ही प्यारी रचना.
जवाब देंहटाएंबीती विभावरी जाग री ,,
जवाब देंहटाएंराम का पुरातात्विक साक्ष्य आने वाला है !
आज आपकी कविता बहुत मन भायी है...आपकी प्रेरणा को नमन...
जवाब देंहटाएंवैसे ई लाल सीढ़ी का, का चक्कर है ...कह दीजियेगा तो...
सच में बहुत सुन्दर लगी कविता.....
सच्चा प्यार ही वो है जो कामना मुक्त कर दे। बहुत सुन्दर रचना है। आभार।
जवाब देंहटाएंअच्छी पंक्तिया है ...
जवाब देंहटाएं......
( क्या चमत्कार के लिए हिन्दुस्तानी होना जरुरी है ? )
http://oshotheone.blogspot.com
तुम मिली।
जवाब देंहटाएंअशेष
सभी कामनाएँ।
मेरी दृष्टि में
अब कोई क्षितिज नहीं।
अब कोई शब्द शेष नहीं, व्यक्त क्या करूँ?
मैं समझ रहा हूँ प्रेमपत्र लिखते-लिखते आप कहाँ बह रहे हैं :) लेकिन उसे पूरा... सॉरी आगे बढाते तो रहिये !
जवाब देंहटाएं@ अभिषेक जी,
जवाब देंहटाएंसम्भवत: रविवार को अगली कड़ी आ रही है।
तुम मिली।
जवाब देंहटाएंअशेष
सभी कामनाएँ।
मेरी दृष्टि में
अब कोई क्षितिज नहीं।
बेहतर पंक्तियां....अगली कड़ी...वाह...