मालिश - स्वस्थ तन
दुलार, डाँट - स्वस्थ मन।
प्रथम चुम्बन - सृष्टि लास्य का पाठ
निहाल होना - जीवन में उद्देश्य
रूठना - संसार से निपटने के सूत्र
समर्पण - स्वार्थ से मुक्ति
प्रसव - बचपन वापस।
साथ साथ चुप चाप - मनन
चश्मा ढूँढ़ना - बुढ़ापे की लाठी।
मरण - जीवन सिद्धि।
दाह संस्कार - फेरों की कसम।
तन मन
लास्य
उद्देश्य
सूत्र
मुक्ति
बचपन
मनन
बुढ़ापा
सिद्धि।
चुप प्रतीक्षा में हूँ
हँसा हूँ
तुम्हारे साथ
कैसे बिता दिया स्वयं को!
नारी!
चुप प्रतीक्षा में हूँ
तुम्हारा एक स्पर्श बाकी है -
दाह से मुक्तिदायी
हिम शीतल।
तुम्हारे साथ
कल चैट पर एक अद्भुत मित्र से हुई बातचीत शीत ऋतु से गीता तक पहुँची और फिर मृत्यु पर। बहुत दिनों के बाद एक दूसरे मित्र ने सुध ली और ब्लॉग जगत का देवानन्द कह डाला।
जवाब देंहटाएंचैट सार्वजनिक करने का युग है :) वह तो नहीं कर सकता लेकिन यह कविता उन्हीं दोनों को समर्पित है। कोई देवानन्द बूढ़ा होने पर ऐसे भी सोच सकता है।
अति सुन्दर! ऋतुयें तो आनी जानी हैं और मृत्यु? कितना भी भागूँ...
जवाब देंहटाएंगहरी बात!
जवाब देंहटाएंसुन्दर, गहरे भाव। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसमझ पा रहा हूँ , धुनना चाह रहा हूँ , गुनना चाह रहा हूँ , दर्शन की खोह कभी मौत का रास्ता दिखाती है तो कभी जीवन का ! कविता तो दोनों को प्रभावहीन कर देती है , निर्वेद भरती है , शास्वत-निर्वेद ! वेदितुमार्थ ग्राह्य !
जवाब देंहटाएं@ चैट सार्वजनिक करने का युग है ,
जवाब देंहटाएंसही कहा , बचपना हावी है न्यू-कमर पर ! पुरुष गाली दे तो वह गाली और महिला वही गाली दे तो वह सात्विक प्रतिशोध माना जाता है | मत करियो किसी से खुलकर चैट नहीं तो कोरट घसीट ले जायेंगी ये जालिमें | दूसरी तरफ यह भी एक सच है --- '' नारी बिबस नर सकल गोसाई ,नाचहि नर मर्कट की नाई !''
किसी ने कहा था कि पुरुषों से गाली खा लो उतना बुरा नहीं लगता पर महिलाओं द्वारा किया गया चरित्र-हनन भीतर गहरे तोड़ देता है | शायद 'पौरूख' की संकल्पना चूर चूर हो जाती है इसलिए | अपनी कहूँ तो चैट-अनावरण-प्रकरण ने बहुत सावधान किया , आधी आबादी और दिव्यावधान दोनों से बचने की जरूरत है | स्त्री के 'माता' के रूप ने बहुत गढ़ा है मुझे सो कृतग्य हूँ इसके प्रति , स्त्री के बाकी रूपों से आस्था उठने लगी है | अन्यत्र विराट छद्म दिखता है | बुढौती में भी देवानंद बने रहना बड़े बूते की बात है , हमरे बस का नहीं है , आप बनो ! आपकी कविता में जहां तहां रखे शब्दों को मिलाने लगा तो वैयक्तिक कोलाज सा बना उसी को लिखा ! अब क्या अलग से कहूँ कि कविता सुन्दर है ! आभार !
जवाब देंहटाएंपरिभाषाएं तो छोडिये यह रचना ही बड़ी अनूठी लगी. अति सुन्दर. आभार.
जवाब देंहटाएंअनूठे शिल्प की अनूठी भावप्रवण कविता ..
जवाब देंहटाएं@दिव्यास्त्र मेरा जैसा ही प्रस्तर वक्ष झेल सकता है सो हँसते हँसते झेल लिया बच्चू ,तुम्हे निर्विघ्न करके ...
अर्जुन सर्वथा अजेय है सो अर्जुन हो वसुंधरा को भोगो ..
नियति मानो देख रही थी सब और उसने ऐसी स्थितियां बना दीं सहसा निकला दिव्यास्त्र भीष्म -वक्ष में समा गया ..
अद्भुत, आनन्दातिरेक में नहा गया।
जवाब देंहटाएंअरे दिव्यास्त्र के बाद भी एक अस्त्र चल ही गया ....हे राम !
जवाब देंहटाएंतन मन
जवाब देंहटाएंलास्य
उद्देश्य
सूत्र
मुक्ति
बचपन
मनन
बुढ़ापा
सिद्धि।
....बस मुक्ति और सिद्धि ही नहीं मिलती।
....सुबह दूसरा चित्र नहीं था। साम्य ढूंढ ही लिया आपने..! दूसरा चित्र पहले से कितना मिलता है! सभी की दशा एक..क्या पश्चिम, क्या पूरब..!
चुप प्रतीक्षा में हूँ
हँसा हूँ
तुम्हारे साथ
कैसे बिता दिया स्वयं को!
...अभी और पढ़ना शेष है।
दुनिया में अच्छी बातें कम हैं। अच्छी बातों की बात करना अच्छी बात है। :)
जवाब देंहटाएंअंतत: सब शुभ हो। यही कामना है।
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देव,
पिछले पंद्रह मिनट से प्रयत्नरत हूँ...
न कविता समझ आ रही है...
और न ही यहाँ चल रहा संवाद ही...
क्या करूँ ?
रिटायर हो जाना चाहिये क्या मुझे ?
स्वयं को एक मौका और देता हूँ...
शाम को फिर पढ़ता हूँ...
समझने की कोशिश दिन भर चलती रहेगी!
तब तक हो सकता है कोई यहीं समझा जाये...:)
आभार!
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@ प्रवीण जी,
जवाब देंहटाएंबहुतेरी टिप्पणियाँ कविता से नहीं जुड़तीं। पिछ्ले एक दो दिन में घटित की छाया यहाँ भी आ पड़ी है। उसे उपेक्षा दें।
कविता में एक अति वृद्ध पुरुष अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद आत्मनिरीक्षण की मुद्रा में है। ...जीवन की साँझ में उसे माँ याद आती है, पहला प्रेम याद आता है, पत्नी का साथ याद आता है, उसका समर्पण याद आता है।
वह पाता है कि नारी के साथ जिया गया जीवन का हर स्टेज एक गहरा अर्थ लिए हुए था।
वह नारी के विविध रूपों के साथ बीत गए जीवन को सराहता है। मृत्यु को भी नारी मानता है और अंतिम शीतल स्पर्श की प्रतीक्षा की बात करता है जिससे उसे जीवन में संचित हो गए दाह से मुक्ति मिलेगी।
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आभार! देव,
मैं आपको ज्यादा परेशान तो नहीं करता?
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गूढ़ बात... उम्दा प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमैं तो इसे कहूंगा- “दिव्य प्रेम”
जवाब देंहटाएं@ कुछ कटु अनुभव के कारण पूरी आधी आबादी को कोसना उचित नहीं है ...
जवाब देंहटाएंतुम स्त्री होते तो जानते कि वे पुरुषों द्वारा दिए गए कितने कटु अनुभव और आक्षेप झेलती हैं ...फिर भी वे रिश्तों/प्रेम में विश्वास रखती हैं ...भाई में , पिता में , पुत्र में , पति में , मित्र में ..!
यह कविता ही नारी के विभिन्न रूपों को दर्शा रही है ...तुम्हरे साथ अच्छी बीती ..!