तब जब कि अनुष्टुप घबराने लगे हैं
गालियाँ, सार्थक अभिव्यक्ति या दोनों?
या कुछ भी नहीं ??
मेरे कवि ! तुम्हें पुकारा है।
सावन की फुहारें हैं या
भूमि पर नाचते ढेर सारे आसमान ?
थिरकनें है झमाझूम
झड़ियों में बयान
मन्द घहरती तान पर
कजरी के गान पर
झूमने को तुम्हें पुकारा है |
देश भदेस है
गोपन निर्लज्ज हो
वीथियों में घूम रहा ।
हर चौराहे की प्रतिमा पर
अश्लील से पोस्टर हैं
हम हैं ठिठके
शब्दकोश रिक्त हैं
अर्थानर्थ तिक्त हैं ।
बयानबाजी के खिलाफ
मृदु अर्थगहन गान को
तुम्हारी राह मैं तक रहा।
मेरे कवि! आओ न !!
कवि को ऐसे ही अवसरों पर पुकारा जाता है, रिक्ताकाश भरने हेतु।
जवाब देंहटाएंइतनी विषम परिस्थितियों में कवि का आना अव्श्यम्भावी है , उसे आना ही होगा और जो कुछ वीथियों में है उसे स्थानापन्न करके वहाँ सत्य की स्थापना करनी ही होगी .. मैं आपकी इस पुकार में शामिल हूँ ।
जवाब देंहटाएंआओ न कवि आओ हम भी रहे तुम्हे पुकार !
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभावी पुकार...
जवाब देंहटाएंहे कवि तुम कहां हो...??
ek umda rachna....
जवाब देंहटाएंMeri Nayi Kavita Padne Ke Liye Blog Par Swaagat hai aapka......
A Silent Silence : Ye Paisa..
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सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंnice
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