(1) बसन तन पियर सजल हर छन
(2) आचारज जी
(3) युगनद्ध-3: आ रही होली
उत्तर भारत के उन क्षेत्रों में होली में कबीरा और जोगीरा गाने की परम्परा रही है जहाँ कभी नाथपंथी योगी और कबीरपंथी सक्रिय रहे। प्रचलित कुरीतियों और परम्पराओं पर इन लोगों ने तीखे प्रहार किए। प्रतिक्रिया में जनता ने होली के अवसर पर गाए जाने वाले अश्लील गीतों में उन्हें सम्मिलित कर लिया। इन क्षेत्रों में यह परम्परा पहले से भी थी कि नहीं यह संस्कृत, पाली, प्राकृत और लोकवाणी के ज्ञानी जन ही बता पाएँगे।
मुझे लगता है यह परम्परा क्षेत्रीय रही है क्यों कि सूरत और सिलवासा में मैंने होलिका की केवल विधिवत पूजा होते देखी है। यहाँ तक कि नव विवाहित जोड़े गाँठ बाँध कर परिक्रमा भी करते हैं। श्रीमती जी बता रही हैं कि लखनऊ में भी केवल पूजा होती है। अस्तु..
इन जोगीरों और कबीरों में अश्लील गायन के अलावा हास्य, व्यंग्य, अन्योक्ति और प्रश्नोत्तर शैली में सामाजिक और राजनैतिक मुद्दे तक उठाए जाते रहे हैं। ब्लॉग पर भी ऐसा होना ही चाहिए। मैंने लम्बी सोची थी लेकिन कुछ समयाभाव और कुछ तत्काल की प्रबलता, इसे शृंखलाबद्ध निकालना तय किया ।
मौसम खराब होने की तमाम भविष्यवाणियों और उनके प्रशंसात्मक अनुमोदनों के बावजूद आज भी लखनऊ में जब प्रफुल्लित अरुणोदय देखा तो अपने को रोक नहीं पाया :)
मौसम खराब होने की तमाम भविष्यवाणियों और उनके प्रशंसात्मक अनुमोदनों के बावजूद आज भी लखनऊ में जब प्रफुल्लित अरुणोदय देखा तो अपने को रोक नहीं पाया :)
प्रथम कड़ी अदा जी की इस पोस्ट पर आई एक टिप्पणी को लेकर है। आप लोग भी टिप्पणियों या लेख कविता के माध्यम से फगुनी बयार को फैलाने में सहयोग दें। एक बात का ध्यान रखें कि अश्लीलता न आए, महिलाओं का अपमान न हो - उल्लास में अपमान और अश्लीलता का क्या काम? छींटाकशी फुहार जैसी हो , तीखी हो तो भी गुदगुदाती हो। कठिन काव्य कर्म है यह - लखेरई नहीं।
उनकी कविता की सम्बन्धित पंक्तियाँ ये हैं:
"बड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
उनकी कविता की सम्बन्धित पंक्तियाँ ये हैं:
"बड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
चमारों के छुए पर ये बिरहमन क्यूं नहाते हैं..?"
टिप्पणी और प्रतिटिप्पणी साइड के स्क्रीनशॉट में लगी हैं।
और अब जोगीरा:
के बाति के तान बनल बा के बाति के बाना ?
के बाति के जाति बनल बा के बाति के दाना ?
अदा बाति के तान बनल बा जुदा बाति के बाना
बिना बाति के जाति बनल बा दिलफुलवा पगलाना।
देखs खाली दाना..
.. हा जोगीरा सरssरsर
आप की इस श्रंखला से फाग के रूपों से परिचित होने का अवसर मिला।
जवाब देंहटाएंजनकरिये ही मान लिहल जाई एकरा...आचारजजी.
जवाब देंहटाएंांअपकी पोस्ट के जरिये ही फाग के विभिन्न रूप देख रहे हैं वर्ना पंजाब मे फाग का ऐसा रस कहां। धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंऊंच-नीच का भेद मिटाओ गाओ मिलकर गाना
जवाब देंहटाएंभाव भी समझो ना मारो तुम बिना बात के ताना
एक आचारज गए तो दूजे को ऐसे ही था आना
..हा जोगीरा स.. र.. र.. र.. र.
कोई कबीरा सूझ ही नहीं रहा है फिलवक्त!और मैं कुछ हडबडाया भी हूँ !
जवाब देंहटाएंअदाजी को टिप्पणी का आप्शन मैंने ही कहा बंद करने के लिए... क्यूंकि... ऐसे ऐसे बेवकूफ उनके ब्लॉग पर आते हैं.... जो अपने को महान ग़ज़लकार कहते हैं.... और वो जब कविता लिखतीं हैं तो कहते हैं कि
जवाब देंहटाएं"वाह! क्या ग़ज़ल लिखी है...' और जब " जब ग़ज़ल लिखती हैं तो कहते हैं " वाह! क्या कविता लिखी है" .... अरे! महानुभावों... जब तमीज ही नहीं किसी चीज़ की... तो रचना ही लिख दो.... और बनेंगे खुद को इब्न बतूता ...अरे खुद में तूता नहीं है और चलेंगे इब्न बतूता बनने... और तमीज सिखायेंगे यह मतला है तो वो तत्ला है... वो रदीफ़ है तो वो हदीफ है.... उन लोगों का वही हाल है कि ... "बाप पदै ना जाने .... और.... पूत शंख बजावे.... " इसीलिए मैंने गुस्से में आप्शन ही बंद करवा दिया....
जोगिन भई हम जोग धरिन हम
जवाब देंहटाएंजोगी हुआ ज़माना
छोड़ू गिरिजेश जी ताना-बाना
मिलके फाग मनाना
हा जोगीरा स.. र.. र.. र.. र.
@ महफूज़ मियाँ,
हाँ इस बारे में आपने कहा था...और एक कारण यह माना जा सकता है..
लेकिन असली कारण था..इन दिनों जो ब्लॉग जगत में टिपण्णी को लेकर जो हंगामा हुआ हुआ है...
लोग टिपण्णी करते हुए भी डर रहे हैं...कही कोई विवाद न हो जाए..इस लिए मैंने सोचा कि मेरी पोस्ट में न ये आप्शन होगा न ही किसी को भय होगा...
बस इतनी सी बात है....!!
माफ़ी चाहूँगा अदाजी.... आप चाहे खोले या बंद करें.... मेरी बला से....
जवाब देंहटाएंअदा जी,
जवाब देंहटाएं'टिपण्णी' नहीं 'टिप्पणी' होता है। दस बार अभ्यास कीजिए। टि+प्प+णी :)
महफूज़ मियाँ गुस्साए क्यों हैं, यह समझ के बाहर है।
नदी किनारे धूआँ उठता मैं समझूँ कछु और
अरे जिसके कारन मैं जली वही न जलता होय !
हा..हा.. जोगीरा सर र र र
टिप्पणी, टिप्पणी, टिप्पणी, टिप्पणी, टिप्पणी,टिप्पणी,टिप्पणी,टिप्पणी,टिप्पणी,टिप्पणी
जवाब देंहटाएंअरे जिसके कारन मैं जली घूम रहा धूधुवाय
जवाब देंहटाएंलकड़ी जल कोयला भई अरे अब कोई तो बुझाए...
हा..हा.. जोगीरा सर र र र
सगरी रचना राम बनवलें, ग़ज़ल रची सुफियाना
जवाब देंहटाएंगिरजेसवा के समुझ न आवे मारे बोली ताना
रचना रचना जप के हारा महफुजवा दुलराना
कविता रानी मन में बस गइ शरमाए भकुवाना
हा हा .. जोगीरा सर र र र
रचना तोहरे मन मा बसी ई बात अभी ही जाना
जवाब देंहटाएंबड़ी फजीहत होगी तुमरी पर मती तुम घबराना
संवेदना बहुत है मन मा बस इतना है बताना
टीम-टाम और झो-झाल सब तुम झेल जाना
हा हा .. जोगीरा सर र र र
वाह जी !
जवाब देंहटाएंचलिए भूखे - फगुनांध - बेचारे - मारे - जोगिराये लोगों को
ठंडे 'आचारज' के बजाय एक महफूज 'उस्ताद' मिल गया , तो
झेलो उस्ताद जी .. मजा लो जोगीरा का .. हम तो बची .. आभार , फगुनांध - टीम ! :) :):)
आखिर मोटे तौर पर --- '' आचारज '' = '' उस्ताद '' !
अरे कइ द एहसान सुजान ए मिसिरबाsनीss
जवाब देंहटाएंअरे छोड़ समाज के लाज कहs बतियाँ सयानी
जनि काssटs जीयरा के हुलास फेरा कब आनी
बीति साल बवाल जिनिगि जंजाल रही ठाsनीss
holiharon ko salaam ...
जवाब देंहटाएं.
jogeera farai - fulaay ...
ओहो...यहाँ तो होली की धूम मची हुयी है.
जवाब देंहटाएंभई मज़ा आ गया!!!
ई मेल से प्राप्त टिप्पणी:
जवाब देंहटाएंफाल्गुनी हवाएं हैं
कातिलाना अदाएं हैं
बड़के रिसियाए हैं
मझले फगुनाये हैं
छुटके शर्माए हैं ...
टिप्पणी लायक लगे तो अपनी पोस्ट पर प्रकाशित कर दीजियेगा ...पर इसका अर्थ मत पूछियेगा ...मुझे खुद को भी पता नहीं ....:):)
वर्डप्रेस पर प्राप्त टिप्पणी:
जवाब देंहटाएंभई हमें तो पहले सुना एक गीत याद आ गया...
कुछ पद ही याद हैं...
जोगीरा सा रा रा रा...
गंगा जी के घाट के घाट पर मिला एक इंसान
पूछा उसका नाम तो बोला मैं हूं हिन्दुस्तान
कटोरा लिए खड़ा था...
जोगीरा सा रा रा रा...
कोका कोला पेप्सी कोला तरह तरह का कोला
पर पीने का पानी गायब जब भी नलका खोला
मिली एक बूंद नहीं...
जोगीरा सा रा रा रा...
नई शिक्षा नीति का नया बना कानून
नेता जी के पोते, पढ़ने जाएं देहरादून
बाकी सब भैंस चरावैं...
जोगीरा सा रा रा रा...
फ़ाग का संग मुबारक हो....
जीयो जोगीरा....
जवाब देंहटाएंयह फगुनाई मची जब तें, तब तें यहि ब्लॉगहिं धूम मच्यौ है।
ब्लॉगर-ब्लॉगरा एक बचे नहिं, सबके हिय-अन्तर प्रेम अंच्यौ है॥
देर से आइ कहैं फगुनाय इ ’बाउ’-सुभाव कै खेल रच्यौ है ।
छोड़ि अचारहिं कूदि पड़्यौ सब , कौन अचारज शेष बच्यौ है ॥
वाणी जी की टिप्पणी क्या कहती है...
शरमाया कौन ?...
उल्लास में अपमान और अश्लीलता, उल्लास का अपमान है जो बेहद अश्लील है ।
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