रविवार, 21 फ़रवरी 2010

...फाग आग आँच

.. फाग आग आँच
नरम हुई कड़ियाँ
- फिर टूटीं।

पसर गया प्रेम
शब्द शब्द आखर आखर।
... तूने क्या, कैसे, क्यों बाँध रखा था ?

15 टिप्‍पणियां:

  1. कर गई मस्त मुझे फागुन की हवा,
    मैं लगा झूमने, मुझे ये क्या होने लगा...

    (गिरिजेश भाई, घबराइए नहीं अभी भांग नहीं चढ़ाई है...)

    जय हिंद...

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  2. फ़ागुन का रंग चढ़ने लगा है, क्यों बाँध रखा था? सोच रहे हैं..!!

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  3. पूछते हो क्यों ऐसा सवाल
    जवाब जिसका

    तुम्हें ही मालूम है
    शायद
    सिर्फ़ तुम्हें

    बड़े लंठ हो जी...

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  4. फाग आग आँच
    पसर गया प्रेम
    तो प्रश्न क्यों!
    नाच.

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  5. पसर गया प्रेम ....वाह ...
    तभी फूटी फाग वाणी बड़े दिनों बाद ...:)
    वाणी के स्थान पर कोई उपयुक्त समानार्थी शब्द सुझाएँ ....!!

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  6. '' .. फाग आग आँच
    नरम हुई कड़ियाँ
    - फिर टूटीं।''
    ------- आचारज को पता था कि नरम कड़ियाँ
    तो टूटेंगी ही , पर इस तरह !
    .
    '' पसर गया प्रेम
    शब्द शब्द आखर आखर।
    ... तूने क्या, कैसे, क्यों बाँध रखा था ?''
    ---------- इतना भी लजाना शोभा नहीं देता आप से
    बाऊ-बौद्धिकों को ! बंधन खुला , आनंदार्द्र हुए फिर 'तर्क' क्यों !
    .
    जयशंकर प्रसाद की तरह मैं भी कह
    रहा हूँ ---- '' बिखरी अलकें ज्यों तर्क-जाल ''
    .
    छह ठो लाइन में कमाल किये हो बाऊ !

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  7. किसने बांध रखा था सब झूंठ है कहने की बात

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  8. अरे बहुत बांध रखा है हमने... कहाँ टूटता है. प्रेम का बंधन भी तो है भाई, क्यों?

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  9. क्या, कैसे का मामला नहीं, क्यों का तो बनता ही है ।
    यही तो है आपकी पहचान ! निपट अकेली !

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