बुधवार, 17 मार्च 2010

सापेक्ष दौर

मेरे कुकर्मों की निन्दा न करो
मेरे कुकर्म निम्नतर हैं
मेरे कुकर्म तुम्हें स्वीकार्य होने चाहिए:
उसने बलात्कार किया - तुम चुप रहे
उसने घोटाला किया - तुम चुप रहे
उसने देश को समझौते के नीचे दफन कर दिया - तुम चुप रहे
आज मेरे निम्नतर कुकर्म पर
तुम इतने प्रगल्भ क्यों हो?
तुम पक्षपाती हो
तुम उसके साथी हो
तुम्हारे मन में चोर है -
तुम्हें याद दिलाता हूँ
तुम्हारी कसौटी ।
तुम्हें दुनिया में हो रहे
हर कुकर्म , हर अत्याचार, हर घपले
से गुजरना होगा
उन पर लिखना होगा -
इसके बाद ही तुम लिख सकते हो मेरे स्याह कर्म
कराह सकते हो
मेरे कुकर्मों की तपिश से झुलसते हुए -
बेहतर है चुप रहो जैसे पहले रहे थे
तुम्हारा मौन  तुम्हारा कवच है
गारंटी है
कि
तुम निरपेक्ष हो इस सापेक्ष दौर में -
बोलने पर तुम्हें सफाई देनी होगी :
उसने बलात्कार किया - तुम चुप रहे
उसने घोटाला किया - तुम चुप रहे
उसने देश को समझौते के नीचे दफन कर दिया - तुम चुप रहे
क्यों ? 
.. अब देखो न तुम्हें इस 'क्यों' पर टाँग 
मैंने अपने पग बढ़ा दिए हैं
एक और कुकर्म के पथ पर - 
उम्मीद है कि टँगे हुए तुम 
चुप रहोगे। 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतर है चुप रहो जैसे पहले रहे थे
    तुम्हारा मौन तुम्हारा कवच है
    गारंटी है
    कि
    तुम निरपेक्ष हो इस सापेक्ष दौर में -
    बोलने पर तुम्हें सफाई देनी होगी :

    -बिल्कुल सही कहा!! उम्दा रचना!

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  2. एक सापेक्षिक बेहद जरूरी सा कन्फेशन...!

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  3. तुम्हें दुनिया में हो रहे
    हर कुकर्म , हर अत्याचार, हर घपले
    से गुजरना होगा
    उन पर लिखना होगा -
    इसके बाद ही तुम लिख सकते हो मेरे स्याह कर्म
    कराह सकते हो
    मेरे कुकर्मों की तपिश से झुलसते हुए -
    बेहतर है चुप रहो जैसे पहले रहे थे
    तुम्हारा मौन तुम्हारा कवच है
    गारंटी है
    कि
    तुम निरपेक्ष हो इस सापेक्ष दौर में -
    बोलने पर तुम्हें सफाई देनी होगी :

    काश की इन सेकुलरों और ब्लॉगजगत पर मौजूद इन पैगम्बर के दूतो के पल्ले भी कुछ पड़ता इन पंक्तियों में से !

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  4. अब जब आप जबरदस्ती चुप कराने पर तुल ही गए हैं तो लो चुप ही हो जाते हैं वैसे भी हम पहले ही कहाँ बोलते थे -अब आप अपने हैं तो आगाह करना धर्म समझा !

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  5. यह चुप्पी ही सभी कुकर्मों की जननी है...।
    आइए, चुप रह कर हम भी इस कुकर्म में सहभागी बनें।

    देखिए थूकने की कोशिश भी मत करिएगा।

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  6. सोचा था सारी पुरानी कविताएं पढ़ जाउंगा आज आपकी ! पर अब इसके बाद नहीं !
    कभी सोचते नहीं आप कि टिप्पणी क्यों नहीं कर रहा मैं... कभी टोंका करें श्रद्धेय !

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