देह पीरे पीर रे
नाच रही पीरे पी रे
चन्दन पलंग रात न सोहे
नेह बिछौना अंग न तोरे
निदियाँ नाहीं पीर रे।
नाच रही मैं पीर रे।
सास की बरजन ससुरा गरजन
बाज रहे पायल में झम झम
माती अँखियन नीर रे
रटती पी रे तू पी रे
चकित चौबारे पीर रे
मैं नाच रही पीर रे
देह पीरे पी रे।
अब आओ जू राह तकूँ मैं
सुनती तोरे बैलन की घाँटी
आज सजी सिंगारन खाँटी
अँगना चौखट लाँघ सकूँ मैं
कब उजरूँ तोरे हाथ के तारन
नाच रही पीरे पी रे।
नेह पगी पीर रे।
देह पीरे पी रे।
वाह बाबा,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता लगी सुबेरे-सुबेरे.
बहुत सुन्दर, गिरिजेश भाई!!
जवाब देंहटाएंबिम्ब तो नदिया के किनारे के हैं -पीर शब्द से कई अर्थ ध्वनित हो रहा है -एक पीर बाबा भी ! पीर बाबा का नाम पीर बाबा क्यों पड़ा -इस पर तनिक प्रकाश डालियेगा -क्या वे पीर हर लेते थे या बढ़ा देते थे !
जवाब देंहटाएंपी - प्रिय
जवाब देंहटाएंपी - पीना
पीर - पीड़ा
पीर बाबाओं से अपनी नहीं बनती :) कभी जानने की कोशिश भी नहीं किए। सुनी सुनाई बात जे है कि बहुत से दंगाई, ज़ेहादी और आतताई दफन होने के बाद पीर बन पुज रहे हैं।
कभी पीर तो कभी पीर...
जवाब देंहटाएंक्या बात कह दिए...
जरा हमहूँ कुछ कह देवें ..बहुत दिन से फॉर्म में नहीं आये हैं ...
हाँ नहीं तो...
पोर पोर में पीर है
और पोर पोर में पीर
पीर पोर पोर की जाई प्रभु
और पीर पोर पोर बसी जाई....
पीर ...पीरा ...पीला ...पी कर (मारवाड़ी )
जवाब देंहटाएंसास की बरजन ससुर की गर्जन ...बैलन की घांटी ...
जाने कौन से गाँव में भ्रमण कर आये हैं ....
अदाजी को फॉर्म में देखकर अच्छा लग रहा है ...
निदियाँ नाहीं पीर रे।
जवाब देंहटाएंनाच रही मैं पीर रे।
सुन्दर
अलग सा