न प्रीत न गीत राह किनारे रीत बैठ न पाया बजता रहा जो संगीत मनमीत तुमसे बिछुड़न का कैसी यह धुन जो साथ गाई अब भी बजती शहनाई मैं संगत करता शबनम सा आकाश छोड़ हवा संग धरती पर सूख चले रवि संग पुन: नभ तक रहना गिरना उठना चलना राह किनारे रीत बैठ न पाया बजता रहा जो संगीत मनमीत तुमसे बिछुड़न का अवसाद ढले शाम चले दीप जलें टुकुर टुकुर नेह नीर बन जाँय जुगनू पलक झपकें धूल धूसरित बूँदे गिर बुझ टपक पड़े रात मन काट काट सहस मसक बजता रहा संगीत तुमसे बिछुड़न का आसमान भटक रहे कितने ही रोगी सब ठहर गए ठाँव ठाँव जो आँख धसा व्याध तीर नभ सरि नींद चीखती गई भाग पूरब संग रँग गई लाल चुरा ललाई नयनों से सो न सका बजता रहा जो संगीत मनमीत तुमसे बिछुड़न का।
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बढ़िया कविता!!
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
बहुत बढ़िया !!
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता......अब पहेलियों का नंबर है.....
जवाब देंहटाएं...............
विलुप्त होती... नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ....बूझो तो जाने....
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http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
सुन्दर भावो से भरी हुयी...
जवाब देंहटाएंनमामि बाऊ , पद-लालित्यं !
जवाब देंहटाएंअनेक अनेक |
पूर्णविराम एक ||
सुन्दर रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंभूल गये क्या 'Enter' दबाना !
जवाब देंहटाएंजबर्दस्त डिजाइनिंग ! आभार ।
आपके प्रयोग के उजाले को दोपहर की धूप-सी देखने लगता हूँ कभी-कभी ! बात यह भी है न कि खूब उजाला हो तो वस्तुओं की रूपरेखाएं एकदम शाण पर चढ़ जाती हैं !
आपकी कविता को समझने की कोशिश कर रहा हूँ ---
जवाब देंहटाएं'' .............................................................................
चित्र ................................... चित्र
...................................
...................................
....................................
................................................................................
..................
चित्र ''
कविता = ....................... की चीजें ?
क्या कुछ सफल रहा ?
,,,,,,,, काव्य गिलास भर गया !
मैं स्थूल-बुद्धि समझ न पाया !
ज्यामिति पर उतर आया !
'वितवीन द पिक्चर्स ' की कविता पहली बार पाया !
हा हा हा हा :) :) :) ;)
एक ठो भाष्य दे दीजिये न यहि कवितवा का !
जवाब देंहटाएंमजा आ जाई :)
हाय रे नियति ! अपनी कविता का स्वयं भाष्य? :)
जवाब देंहटाएंबाईं तरफ का चित्र है - व्याध नक्षत्र का (Hunter, Orion)| देहात में इसे तिन__ जैसा कुछ कहते हैं। पुराने जमाने में कल्पित व्याध की कमर पर बँधे तीन चमकदार तारों की रेखा की गति से रात के समय का पता चलता था। दाईं तरफ आकाश गंगा - जिसे मैंने संगीत को ध्यान में रख नभ सरि कहा है। नीचे प्रात:काल में पूरब दिशा का चित्र ऐसे काँच के पार से लिया गया है जिस पर वर्षा के प्रवाह ने धूल से मिल रेखाएँ खींच दी हैं।...
विरही छ्त पर लेटे रात भर तारों को निहारता रहा है। आकाशगंगा व्याध के धनुष से छूटी भयानक तीर सी लग रही है.. बाकी संगति अब आप लोग बैठा लीजिए।
..व्याध नक्षत्र के इन तीन तारों की दिशा में ही मिस्र के पिरामिड बने हैं। गीजा पिरामिड में एक लम्बा पतला छिद्र है जिससे उस जमाने में सीधा इन तारों की रेखा से मिलान किया जाता था। इसका इस कविता से सम्बन्ध नहीं है।
@ हिमांशु जी,
जवाब देंहटाएंमैं शब्दों के अर्थ, लय, ध्वनि, प्रवाह से खेलता रहा हूँ - इसे स्वीकार करता हूँ। बचपना कह लें या कुछ भी। लेकिन अर्थ रहते हैं। ऐसी रचनाएँ तभी आती हैं जब उदास होता हूँ - बहुत। कहीं भीतर से। अच्छा लगता है अपना ही रचा गुनगुनाना।
इस खण्ड को भी गुनगुनाया जा सकता है। पता नहीं कविता है या नहीं! अगर सही शिक्षा मिली होती तो सम्भवत: अच्छा संगीतकार बनता। ..
राग यमन पर शंकर महादेवन ने वह गीत गाया है न नॉन स्टॉप - कोई जो मिला तो ... 'Breathless'. .. नहीं इस कविता में विराम या Enter दबाने की आवश्यकता मैंने नहीं समझी। ध्यान देंगे तो अवसाद से निकली पहली पंक्ति बाकियों से यूँ घुल मिल गई है कि यति, विराम बेमानी से हो जाते हैं...
सच कह रहा हूँ कि आप यह समझावक भाष्य न देते , तो यह सब
जवाब देंहटाएंसमझना नामुमकिन था !
हमने तो अपनी अज्ञानता प्रदर्शित करके ज्ञान पाने का अवसर
घसीट लिया पर उन प्रगल्भ ज्ञानियों को क्या कहूँ जिनके '' बहुत बढियां '' ने
भी हमें इतना उत्साह न दिया कि खुद से समझ सकूँ !
@ हिमांशु भाई ,
आइये राग यमन में 'राम नारायण' वाली सारंगी सुनिए ! हमें तो बहुत कुछ मिला !
कुछ पाना है तो गाँठ बाँध लीजिये ;
'' खोदनं परमं धर्मं '' ! :)
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बाऊ !
स्वयं भाष्य देने की नियति भी मुझ से विकल-बुद्धि के लिए स्वीकारें आर्य !
भाष्य देकर तो बहुत अच्छा किया आपने वर्ना तो अपनी समझ से बाहर की बात थी :)
जवाब देंहटाएंआपकी कविता का न ओर दिखा न छोर ..वैसे ही हम कम मगजमारी तो करते नहीं हैं आपकी कविता समझने में... उसपर से ई कलाकारी....तभे तो हम भाग गए थे ....
जवाब देंहटाएंमाने कौनो जनम का दुश्मनी है तो कह दीजिये...ऐसा कोई बदला लेता है का...एतना बड़ा आर्टिस्ट बनने का भला का ज़रुरत हो गया आपको...छोटा-मोटा से काम नहीं चलता का..??
कविताई तो है पर नज़र नहीं आई...बिना बात हमरे चश्मा का नम्बर बढाई...
हाँ नहीं तो....
कहां शुरू होती है, कहां जाती है, कविता!
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
जवाब देंहटाएंस्वरों में कोमल निशाद और बाकी
स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है,
जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा
जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
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avasaad bhii kis kis trh se abhivykt hota hai !!!!
जवाब देंहटाएं(nagaland ke junglo me hu. net thoda dhire h isliye lipyantaran nhi ho paa rha hai.)
जवाब देंहटाएंaapaki sabse achchii kavitaa "narak ke raaste" thi , hai aur (rahegii , iski bi puri sambhaavanaa hai . )
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर शब्दों का चयन....वाह
जवाब देंहटाएंआज ज्ञात हुआ कि ये व्याध नक्षत्र है। बालपन से मेरा प्रबल आकर्षण रहा है ये।
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