रविवार, 21 मार्च 2010

डरो नहीं

डरो नहीं - प्रेम जीवित रहेगा।
मृत्यु के बाद भी।
बिछड़ने के बाद भी।
तारे के उल्का हो जाने के बाद भी।
चाँद तारों के पार प्रेम जीवित रहेगा -

मैं मैं न रहूँगा
वह वह न रहेगी।
..बहुत दिनों बाद जब याद करेंगे
प्रेम फैलेगा मुलायम चाँदनी बन
याद को आकार देते हुए -

अँधेरे में आकार कहाँ होते हैं?
अँधेरे में डर लगता है । 
चाँदनी ! 

11 टिप्‍पणियां:

  1. कई बिम्ब और चेहरे , चाँद और चांदनी मन में फ्लैश हो गए! और रात में संचरण तथा अभिसार तक

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  2. मैं मैं न रहूँगा
    वह वह ना रहेगी
    फिर भी प्रेम रहेगा ....
    रहा है ....
    चाँद तारों के पार भी ...

    कैसे रहेगा प्रेम जीवन मृत्यु को लांघ ...(हिमांशु की कविता ) ...पढ़ी है ..??

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  3. जितना प्यारा
    डर
    उतना अच्छा
    उत्तर
    गिरजेश राव
    बढ़ा देते हैं
    कविता का भाव
    भाव?
    मूल्य नहीं....
    संवेदना का विस्तार
    आखिर इसी से तो बढ़ता है
    परस्पर प्यार!
    ,,,अच्छी कविता के लिए बधाई.

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  4. @ डरो नहीं - प्रेम जीवित रहेगा।

    @ अँधेरे में आकार कहाँ होते हैं?

    शायद इसीलिये अंधेरे में भीम खीर खा पाये थे और दुनिया ने जाना कि वह कितने खीर प्रेमी थे :)

    बढिया लिखा।

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  5. डरो नहीं - प्रेम जीवित रहेगा।
    मृत्यु के बाद भी।
    बिछड़ने के बाद भी।
    तारे के उल्का हो जाने के बाद भी।
    चाँद तारों के पार प्रेम जीवित रहेगा -
    ...........मनभावन.

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  6. आपकी कविता को बहुत निजी स्तर पर महसूस रहा हूँ !

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  7. तारे के उल्का हो जाने के बाद भी।
    चाँद तारों के पार प्रेम जीवित रहेगा -
    ....इतनी दूर की कोड़ी?
    बिल्कुल अलग अंदाज़...आनन्ददायी.

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  8. मूल्य नहीं....
    संवेदना का विस्तार
    आखिर इसी से तो बढ़ता है
    परस्पर प्यार!
    ,,,अच्छी कविता के लिए बधाई.

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