रजनी का पक्ष कृष्ण
बेला है भोर की ।
चंचल मन्द अनिल नहीं ऊष्ण
कमी है शोर की।
अपूर्ण चाँद ऐसा लगता
अन्धकार को दूर करने हेतु
जैसे जला दिया हो प्रकृति ने
एक शांत दिया।
श्वेत बादल ऐसे चलते
इस दीप के उपर से
जैसे हों इस दीप से निकले
पटलित धूम।
इक्के दुक्के तारे निकलते
इनके बीच से
जैसे खेल रहे हों बच्चे
आँखमिचौनी गरीब के।
सुन्दर..!
जवाब देंहटाएंइक्के दुक्के तारे निकलते
जवाब देंहटाएंइनके बीच से
जैसे खेल रहे हों बच्चे
आँखमिचौनी गरीब के.....
वाह भइया वाह, गजब का लेखन-गजब का भाव. ...
bahut khoob ashavadi rachna
जवाब देंहटाएंbahut behatrin maja aa gaya padhkar
जवाब देंहटाएंअच्छा दृश्य कोलाज
जवाब देंहटाएंसांझ सकारे !
खटिया पर लेटा हलकू
जवाब देंहटाएंकूकुर की झाँव-झाँव सुनकर
टूट गयी नींद को समेटता हुआ
लुंगी बाँध, कन्धे पर गमझा डाल
चल पड़ा खेत की ओर,
डंडा संभाले
जैसे जीवन का चक्र
रोज ही चलता है सूरज के साथ
चन्दा के साथ
सुन्दर.......
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.......
हे गौरैया....तुम मत आना
आज है विश्व गौरैया दिवस....
पर तुम मत आना...भूल कर भी मत आना
..............
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जैसे खेल रहे हों बच्चे/आँखमिचौनी गरीब के .. राव साहब इस बिम्ब पर मैं कुर्बान जाऊँ ...।
जवाब देंहटाएंवाह भइया वाह, गजब का लेखन-गजब का भाव. ...
जवाब देंहटाएंहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
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