पाखी !
न बोल साखी
हवा साखी
पेंड़ साखी
मानुख न सुनेगा
न आएगी बारी
पाखी न बोल -
साखी।
छाँव सूखे
पत्ते इकठ्ठे
कोई न बैठे
जो सुने साखी
न बोल -
पाखी।
न बोल
बच्चे -
नहीं किलकते ।
एनीमेशन
उम्दा पाखी
सम्मोहित देखते
आँखें निकलीं
पसरी खामोशी
आवाज चहचह
इलेक्ट्रॉनिक -
पाखी न बोल।
तेरे बोल
कभी गीत
कभी साखी
कभी लोरी
कभी फुसलावन
कभी बस मनभावन -
थे -
अब नहीं हैं ।
... बहरे हैं -
पाखी न बोल।
मानुख न सुनेगा
जवाब देंहटाएंन आएगी बारी
पाखी न बोल -
साखी।
....वाह!
एकदम मनबोल कविता है।
जवाब देंहटाएंचित्र के साथ नॉस्टॉल्जिया खनखना उठा।
एकदम मस्त।
पाखी तू बोल
जवाब देंहटाएंहिय-मर्म खोल
कोई सुने न सुने
बाऊ सुनेगा !
कविता में गुनेगा !
.
साखी बनेगी स्याही
सियाही सियाही !
आलोकित होगा
थका - हारा - राही !
....... पाखी तू बोल ,,
....... हिय - मर्म खोल ,,
.
मिट जायेंगे सब
उजड्ड , उजबक !
तेरी नासर्गिकता का
कोई न मोल !
......... पाखी तू बोल ,,
........... हिय - मर्म खोल ,,
.
आभार बाऊ !!!!!!!!!!!!!!!
बच्चे -
जवाब देंहटाएंनहीं किलकते ।
एनीमेशन
उम्दा पाखी
सम्मोहित देखते
आँखें निकलीं
पसरी खामोशी
आवाज चहचह
इलेक्ट्रॉनिक -
पाखी न बोल
बेहतर पंक्तियां...
बिल्कुल अलग अंदाज की रचना !!
जवाब देंहटाएं"पाखी तू बोल
जवाब देंहटाएंहिय-मर्म खोल
कोई सुने न सुने
बाऊ सुनेगा !
कविता में गुनेगा !"
यही कह दूँ ! अदभुत !