रविवार, 14 मार्च 2010

मुंडेर पर अब कोई कबूतर नहीं

बन्द कर दिया लेटर बॉक्स का द्वार

तोड़ डाले सब मोबाइल,

मिटा दिए सब ई मेल पते...

ठहरे आँसू

टपके आज

तुम्हारे जाने के बाद ...

बहुत दिनों के बाद।

बरसे आँसू

बहुत दिनों के बाद

मुंडेर धुली

बहुत दिनों के बाद।

18 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ये धुली धुली मुंडेर तो जाने क्या क्या कह गई ..बहुत सुंदर
    अजय कुमार झा

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  2. अच्छी है! मगर आपसे ज़्यादा की उम्मीद होती है।

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  3. ई मेल द्वारा टिप्पणी:

    लेटर बॉक्स , ईमेल पते , मोबाइल ...
    और जो सन्देश इनके बिना ही पहुंचे ....
    दिल से दिल के तार बेतार जुड़े
    मन की काई सब मिट गयी जो मुंडेर धुले ...

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  4. @ पलीता विशेषज्ञ अदा जी ...
    क्या गौर करने को कह रही है ....कविता है ...सिर्फ कविता ....और पाठक/पाठिका का कविता को देखने का नजरिया ....समझी

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  5. ठहरे आँसू

    टपके आज

    तुम्हारे जाने के बाद ...
    " बेहद भावुक पंक्तियाँ.."
    regards

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  6. कविता पढ़ कर संजीदा हो गया था और अरविन्द मिश्र जी का कमेन्ट पढ़ कर विलयन कुछ इस तरह का बना है कि कहने को बन नहीं रहा.

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  7. बहुत दिनों के बाद
    मुंडेर धुली
    बहुत दिनों के बाद।
    क्या प्रतीक दिया है. बेहतरीन

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  8. बेहतरीन शब्दों की संरचना..सुंदर भाव बधाई!!

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  9. तोड़ डाले सब मोबाइल,

    मिटा दिए सब ई मेल पते..

    बिलकुल नये बिम्ब हैं यह ..मज़ा आ गया ।

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  10. ठहरा हुआ बाँध टूटा है तो एक-दो गाँव तो वैसे ही बह जायेंगे !

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  11. मुंडेर यूँ नहीं धुलती...जब तक संवेदना की दबी नसें फूट नहीं जाती.
    ..बेहतरीन कविता के लिए बधाई.

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  12. संवेदना तो खूब भरी है आपमें !
    यह जो शीर्षक पंक्ति है, वह मुझे कविता में चाहिए कहीं !

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