घन आये इस रात सुहावन,
मन रे कोई गीत रचो
रीति नहीं अगीति सही,
सावन का संगीत रचो।
क्षिति जल पावक गगन सब रूठे
पवन झँकोरे गाछ गज ठूँठे
देह थकित दाह ज्वर छ्न छ्न,
धावन पग पथ साथ गहो
थोड़े थोड़े पास रहो।
सूखा पड़ा टिटिहरी दुखिया
कोस थकी निरर्थक मुनियाँ
बच्चे बढ़ते अंडज चिक चिक,
उड़ने को गम्भीर सुरों!
झंझ मृदंग उठान वरो।
करुणा उगलें तिमिर लहरियाँ
आतप तप कुम्हलाई बगियाँ
प्रार्थना के फूल लोप फिर,
अँसुअन सीझी दीठ बचो
सावन का संगीत रचो।
काश घन घनघोर बरसें,
जवाब देंहटाएंमन धरा आनन्द सरसें।
यह उतावलापन अभी से :)
जवाब देंहटाएंआह! मन मुग्ध हुआ!
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