रविवार, 5 अप्रैल 2020

दीप जला रे!


भ्रमित अहं मन अहन गिने रे 
सूरज ने हारे अंधेरे 
प्रीत द्यूत की जीत मना रे 
दीप जला रे! 

नायक चाप शर भङ्ग हिले 
हंता मन में मोद खिले 
आँखें जब हों दीर्घतमा रे
दीप जला रे! 

दिशाशूल सब सङ्ग मिले 
यात्रा के बहुपंथ भले 
सब भूलों की माँग क्षमा रे
दीप जला रे! 

इस रात विपथगा गङ्ग चले
पूनम में न आस दिखे 
तेरस को भी मान अमा रे 
दीप जला रे! 

रुद्रों के सरबस शूल चले 
भगीरथों के कंध छिले 
दुखते पापों के भार सदा रे
दीप जला रे!

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