आज आप की ग़जल गुनगुनाई है।
लगता है जैसे हमारी बन आई है।
सुर ढूढ़ता रहा जिस्म-ए-साज में
आज जाना ये शै आलमें समाई है।
मतला, वजन, धुन,काफिये, बहर
मेहरबाँ, अनाड़ी ने महफिल सजाई है।
मिलेंगे उनसे आँख मिला कर पूछेंगे
हो इनायत, आज नीयत डगमगाई है।
चुप होंगें वे, हँसेंगे आँखों आँखों में
हुआ गजब,काफिर ने दिखाई ढिंठाई है।
सजाओ बन्दनवार गद्दी सँवारो पुकारो
बहक लहकी फिर,हर बात जो भुलाई है।
मतला, वजन, धुन,काफिये, बहर
जवाब देंहटाएंमेहरबाँ, अनाड़ी ने महफिल सजाई है।
सजाई बहुत खूब है लेकिन..वाह वाह कहें..कह दिया!
न कहें सरकार। सजावट की तारीफ ही क्या कम है !
जवाब देंहटाएंइस महफिल में आप आए यही बहुत है
कभी खुद को कभी अपनी साइट देखते हैं ।
वाह वाह ! क्या शेर कहा! सुभानअल्ला!!
अबे चुप्प, भौंड़ी नकल मारे हो :(
मतला, वजन, धुन,काफिये, बहर
जवाब देंहटाएंमेहरबाँ, अनाड़ी ने महफिल सजाई है।
ऐसे अनाड़ीपन की ही तो कामना है।
यूँ ही सजाते रहे अनाड़ी महफिल को
इसी सजावट में सुमन की भलाई है
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
नीयत डगमगाई काफिर की तो वह भी साल के जाते जाते।
जवाब देंहटाएंनववर्ष पर आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
कहाँ नीयत डगमगा ली ...किसकी ग़ज़ल गुनगुना ली..
जवाब देंहटाएंकुछ भेद तो खोलिए ...
बात ही बात मे गीत कविता ग़ज़ल नज़्म लिखना तो कोई आपसे सीखे ...
नववर्ष की बहुत शुभकामनाएँ ...!!
काफिर तो आप कभी न थे आज ये आत्मोसर्ग का कैसा जूनून ?
जवाब देंहटाएंऔर धीरे से ये गजल भी घुसाए हैं -जोरदार है !
कहीं कोई इम्प्रेस न हो जाय !
Good luck!
जवाब देंहटाएंआज आप की ग़जल गुनगुनाई है।
जवाब देंहटाएंलगता है जैसे हमारी बन आई है।
सुर ढूढ़ता रहा जिस्म-ए-साज में
आज जाना ये शै आलमें समाई है।
बहुत खूब, लाजबाब ! नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
इक काफ़िर ने क्या ग़ज़ल पढ़ाई है
जवाब देंहटाएंआँखों से सीधी दिल में उतर आई है
नववर्ष की बहुत शुभकामनाएँ ...!!
मिलेंगे उनसे आँख मिला कर पूछेंगे
जवाब देंहटाएंहो इनायत, आज नीयत डगमगाई है।
वाह! बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ ...बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
थोड़ी मौसम की भी गलती है......
(NB:--भई.... आपने देखा होगा कि खेतों में....एक पुतला गाडा जाता है .... जिसका सर मटके का होता है... उस पर आँखें और मूंह बना होता है.... और दो हाथ फूस का..... वो इसलिए खेतों में होता है.... कि फसल जब पक जाती है ..... तो कोई जानवर-परिंदा डर के मारे न आये...... मैं शायद वही पुतला हूँ.... )
बहुत सुंदर गजल,
जवाब देंहटाएंनुतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
नववर्ष आपके और आपके समस्त परिवार के लिए मंगलमय हो ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनायें....!!!
@आज आप की ग़जल गुनगुनाई है - हमारी, आपकी का कैसा भेद, क्यों?
जवाब देंहटाएं@"सुर ढूढ़ता रहा जिस्म-ए-साज में
आज जाना ये शै आलमें समाई है" - समझ में आयी न बात! भटके कितना !
@"मतला, वजन, धुन,काफिये, बहर
मेहरबाँ, अनाड़ी ने महफिल सजाई है" - झूठे ! इस पर न्यौछावर यह ब्लॉगजगत ।
@"मिलेंगे उनसे आँख मिला कर पूछेंगे- मतलब फिर ज्यादा आत्मविश्वास !
@"चुप होंगें वे, हँसेंगे आँखों आँखों में
हुआ गजब,काफिर ने दिखाई ढिंठाई है।" - नहीं, नहीं, काफिर को अक्ल आई है !
@"सजाओ बन्दनवार गद्दी सँवारो पुकारो
बहक लहकी फिर,हर बात जो भुलाई है।" - कब तक याद रहेगी! तबियत ही ऐसी है ।
हम तो चहक उठे ! टिप्पणी जो हो गयी !
हमें तो न दिखा नीयत डगमगाना। ठीक ही तो है।
जवाब देंहटाएंकविता लिखने भर से नीयत नहीं डगमगाती। उसके लिये कोई और तरह का कलेजा चाहिये! :-)
वाह-वाह। क्या ग़ज़ल सुनायी है।
जवाब देंहटाएंहम तो मर मिटे इस अनाड़ीपन पर।
अगर भाषा को तोडने मरोडने की इजाजत दें तो कहूंगा की आपने गजब ढाई है।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की अशेष कामनाएँ।
आपके सभी बिगड़े काम बन जाएँ।
आपके घर में हो इतना रूपया-पैसा,
रखने की जगह कम पड़े और हमारे घर आएँ।
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2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।