सुबह सुबह नींद खुलते ही भनभनाता हूँ - कमबख्त कितनी ठंड है ! श्रीमती जी हैप्पी न्यू इयर बोलती हैं तो याद आता है - वो: ! ऐसा क्या हैप्पी है इसमें? हर साल तो आता है और इतनी ही ठंड रहती है। हर साल लगता है ठंड बढ़ती जा रही है। शायद हम बूढ़े होते जा रहे हैं।
सोच को अभी समझ सकूँ कि बोल फूट ही पड़ते हैं - बड़ी खराब आदत है। बड़े बूढ़ों ने कहा सोच समझ के बोला करो। लेकिन हम तो हम, बहुत धीमे सुधरने वाले! अब तो सोचते ही लिखने भी लगे हैं – जिन्हें जो समझना हो समझता रहे।
शायद अभी बूढ़े नहीं हुए - उठी तसल्ली अभी बैठी भी नहीं कि मन के किसी कोने से आवाज आती है - अभी मैच्योर नहीं हुए! धुत्त !!
..श्रीमती जी मेरी बात पर मीठी झाड़ पिला रही हैं। सोचता हूँ बात तो सही है। उत्सव तो होना ही चाहिए। माना कि ठंड बढ़ती चली जा रही है लेकिन इस बार तो रजाई से दहाई निकली है - 2010। पिछली दफा सौ साल पहले निकली थी लेकिन तब न हम थे, न ये शमाँ और न ये सारे लोग लुगाई। अगली बार दहाई निकलेगी सौ साल के बाद और हमें सुपुर्द-ए-खाक हुए जमाना बीत चुका होगा। मुई को सेलिब्रेट तो करना ही चाहिए। हुँह , मन बहाने ढूढ़ ही लेता है!
गया साल 9 का था, दशमलव प्रणाली की इकाई में सबसे बड़ा अंक।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट पढ़ते सोचता हूँ - आप सबको गुड लक बोलूँ। रिपोर्ट कहती है कि भारत की स्थिति इतनी अच्छी है कि अगर अगले दस वर्षों तक कोई आर्थिक सुधार न हो तो भी भारतीय अर्थव्यवस्था 9.6% वार्षिक दर से वृद्धि करेगी ! ( The Indian Express – Indicus Analytics study)।
अगली ही पंक्ति पढ़ कर उदास हो जाता हूँ इतनी वृद्धि होने पर भी 25 करोड़ लोग ‘अति निर्धन’ की श्रेणी में रहेंगे, 10 करोड़ लोग भी ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट नहीं हो पाएँगे और कृषि का अर्थ व्यवस्था में योगदान 10% तक सिकुड़ जाएगा जब कि इसके उपर पेट की आग बुझाने का जिम्मा बहुत बढ़ जाएगा। उत्तर प्रदेश का जीवन स्तर 2005 के पाकिस्तान से भी बदतर होगा .... गुड लक या बैड लक का निर्णय आप के उपर छोड़ता हूँ। जरा सोचिए।
वित्तीय वर्ष वाला नया साल अप्रैल से चालू होता है। ये दो नए सालों में तीन महीने का अंतर क्यों होता है? बाकी जिन्दगी में नए साल का उत्सव जनवरी में तो अर्थव्यवस्था में अप्रैल में!
मेरा मन मुझे डाँटता है, हो गया होगा कभी निभाए जा रहे हैं। मैं कहता हूँ, नहीं! इसमें प्रयोजन है। अपने परिवार और अपनी जिन्दगी को पहले रखो, काम तो बस एक हिस्सा भर है। देखो कितनी अच्छी व्यवस्था है ! वित्तीय वर्ष के उत्सव की तैयारी के लिए पूरे तीन महीने मिलते हैं। तसल्ली से, कायदे से काम करो न ! सरकारी/प्राइवेट कर्मचारी मित्रों! आप लोग सुन रहे हैं?
मेरा मन फिर कहता है लेकिन कोई घूम घूम कर पहली अप्रैल को 'हैप्पी न्यू इयर' क्यों नहीं कहता ?
अरे किस लिए कहे क्या जरूरी है कि कार्यक्षेत्र का उत्सव आम जिन्दगी सा ही हो? देखो, सारा लेखा जोखा कितनी लगन, कितनी तत्परता से हम सहेजते हैं, सँवारते हैं, कितना टेंसन ले कर करते हैं! उत्सव ही तो होता है।
अभी मुझे एक बात ध्यान में आई जब आज तो केवल 0 और 1 हैं - बाइनरी डिजिट्स-010110। मन के किसी कोने आवाज आई अरे 20 को कहाँ छोड़ दिए?
अबे चुप्प! 2k की दहशत गए जमाना हो गया। फिर जब आएगी तो 90 साल बाद, शायद 990 वर्षों के बाद। जो होगा वो झेलेगा अभी तो बस 10 की बात करो।
बाइनरी का 010110 दशमलव पद्धति में 22 होता है। हम दो हमारे दो (भाई आदर्श वाक्य है, इतर तो बस दो को ही मना लें, इकलौतों के लिए 1 है ही!)
तो यह साल दो दुनी चार करने का है मतलब दिन दूना रात चौगुनी तरक्की। चलिए लग जाते हैं।
...अरे ! मैं तो हैपी न्यू इयर कहना भूल ही गया!
HAPPY NEW YEAR. नववर्ष मंगलमय हो।
य़ॆ गद्य भी पद्य से कम नहीं. फिर दो दूनी चार, चार दूनी आठ हमारे बचपन की पहली पद्य रचनाओं में हैं.
जवाब देंहटाएंदो दुनी चार का धन्धा करने को बता रहे हैं। इसे आगे बढ़ाने की वकालत करना सांप्रदायिक विचार हो सकता है। बल्कि है ही। सूद से पैसा कमाना एक प्रमुख धर्म के उपदेश के खिलाफ़ है। पैसा कमाने और बढ़ाने का कोई दूसरा तरीका भी उतना ही सांप्रदायिक करार दिया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंयह जो २०१० का बखान कर रहे हैं वह भी किसी को अखर सकता है। यह तो एक साम्राज्यवादी धर्म के कैलेण्डर के हिसाब से ऐसा है। दूसरे पन्थ तो कुछ और ही गणना मानते हैं। इसीलिए उन्हें एक ही त्यौहार अलग-अलग मौसम में मनाने और लुत्फ़ उठाने का अवसर मिलता है। घोर सर्दी में ही हर साल नया साल आता है। हाऊ बोरिंग न...!
फिर भी सब बोल रहे हैं इसलिए बोल दे रहा हूँ- हैप्पी न्यू इयर।
दो दुनी चार में ही सार...लग जाओ भाई..
जवाब देंहटाएंवर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
- यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
यी मुई ठण्ड तो मार ही डाले दे रही है ..गुडगुडा रहे हैं .वो याद हैं न निराला की कविता ...
जवाब देंहटाएंशीत ऋतु की शर्वरी है हिंस्र पशुओं से भरी ......
इस समय तो सचमुच कविता गद्यमय हो रही है और गद्य पद्यमय ..दांत जो किटकिटा रहे हैं !
थोडी ठंड मुंबई में भी भेज दीजिये.....यहां से गर्मी वीपीपी द्वारा भेज रहा हूँ....छुडा लेना :)
जवाब देंहटाएंनववर्ष की शुमकामनाएं
नववर्ष की शुभकामनाऍं ।
जवाब देंहटाएंहम तो पद्य के आँगन गद्य की ता थईया देख भकुआय गए हैं...
जवाब देंहटाएंरजाई ओढ़ के जो घीउ पी रहे हैं उ भी दिखिये रहा है...
माने जड़ाइल गतर का मगज ऐसा काम करता है का भाई...!!!
कहिये तो हैप्पी न्यू इयर बोल के तो श्रीमती जी का हाथ थामे तो पूरा २०१०१ तक चहुँपा दिए.. ईहे न कहाता है हाथ पकड़ के पहुंचा पकड़ना... हाउ रोमांटिक !!
और अब का है ...अर्थशास्त्र का मानक बताइए रहा है की २ दूनी चार होइए जाई...तो बस शुरू कीजिये न पहाड़ा पढ़ना ...दो दूनी चार, दो तीय छ ...दू चौक आठ...
बेस्ट ऑफ़ लक....और हैप्पी न्यू इयर.... :):) !!
padhay ke madhy gadhy aur ganit dono pdhai nye sal me achhi rhi .
जवाब देंहटाएंnav varsh ki bdhai
नववर्ष मंगलमय हो!
जवाब देंहटाएंनया वर्ष नई खुशियाँ लाए!
सुंदर गद्य!
हम भी भूल ही गए थे - हैप्पी न्यू ईयर कहना !
जवाब देंहटाएंमेहमान चरित्र-सम है मेजबान के, इसलिये निभेगी !
दो दुनी चार का अर्थशास्त्र समझा दिए हैं ...मतलब सरकारी काम काज पूरी तल्लीनता से किया जाता है ...
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की बहुत शुभकामनायें ...!!
क्या गज़ब की "पैटर्न मैचिंग" करते हो यार. बहुत पुरानी (विशुद्ध अपनी) दो पंक्तियाँ याद आ गयीं:
जवाब देंहटाएंप्रवृत्ति है अनुहार ढूँढने की
तभी सदा ठगा जाता हूँ मैं
इस लेख के बारे में अजब इत्तेफाक है. मिलते जुलते विचारों पर एक पोस्ट ड्राफ्ट में पडी है. पाठकों को दशक की गफलत से बचाने के लिए पब्लिश नहीं की. रही बात ठण्ड की तो हम तो उत्सव-प्रिय लोग हैं अमावस को दीवाली न किया तो उत्सव कैसा?
इतना गणित हल करने में अपनी ठंड तो दूर हो गई - शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंआप तो इन्वेस्टमेंट बैंकिंग के लिए बने हैं महाराज :) का का तो ढूंढ़ लाये इसमें.
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