स्मरण दिवस प्रिये, निमंत्रण देह गन्ध
पहली बेला महकी।
वलय वृत्त गणित, सौन्दर्य सृष्टि अपार
केवल सन्तति हेतु ?
तुमने रचा संसार, मधु राग राग स्वर
आभा नृत्य अभिसार ।
अधर मार्दव चूम, दाड़िम दंत पखार
स्पर्श सुख सहसा सा।
रोम रोम रस धार, छाया विद्युत प्रवाह
कसा बसा आलिंगन।
टूटे बन्ध देह मुक्त, तड़प उठी बिजली
लयकारी सिसकी की।
साँसे ऊष्ण संघर्षण, दो एकाकी हुए एक
आहुति अर्घ्य संगति।
प्लवित मन सकार, नेह झील पूरन सी
सिद्धि हुई जीवन की।
पहली बेला महकी।
वलय वृत्त गणित, सौन्दर्य सृष्टि अपार
केवल सन्तति हेतु ?
तुमने रचा संसार, मधु राग राग स्वर
आभा नृत्य अभिसार ।
अधर मार्दव चूम, दाड़िम दंत पखार
स्पर्श सुख सहसा सा।
रोम रोम रस धार, छाया विद्युत प्रवाह
कसा बसा आलिंगन।
टूटे बन्ध देह मुक्त, तड़प उठी बिजली
लयकारी सिसकी की।
साँसे ऊष्ण संघर्षण, दो एकाकी हुए एक
आहुति अर्घ्य संगति।
प्लवित मन सकार, नेह झील पूरन सी
सिद्धि हुई जीवन की।
वाह! इस विषय पर कविता! लगता है खजुराहो पहुँच गया हूँ।
जवाब देंहटाएंवलय-वृत्त बिन स्पर्श-रेखा के भी कमाल है यहाँ तो !
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह ही विद्युत् स्पर्श करा ही दिया न भाई ....शब्द शब्द स्फुलिंग ...
जवाब देंहटाएं.क्या कहूं -बड़े होने की गरिमा का भी तो खयाल रखना है ....
अब आपके टिप्पणीकार निश्चित ही घटेगें -सांत्वना यह कि पाठक बढ़ेगें !
क्या चाहिए वत्स तुम्हे ,पाठक या महज टिप्पणीकार ? अब तुम हो अपनी नियति के निर्णायक !
वलय वृत्त गणित
जवाब देंहटाएंसौन्दर्य सृष्टि अपार
केवल सन्तति हेतु ? ..
पूरी रचना का अलग सौंदर्य है ,इन लाइनों का कुछ खास ही .
बेहतरीन प्रस्तुति.
मांसलता बगैर मांसल हुए ...
जवाब देंहटाएं'कांफिडेंस' को सलाम ...
.
जवाब देंहटाएं.
.
वाह,
दुरूह विषय पर सहज रचना,
आभार!
ऐसा!!!
जवाब देंहटाएंहुड़दंगी में कभी कभी कमाल करते हो।
जवाब देंहटाएंबन गए फॉलोवर।
शापित हो, 'पूरन' के बाद भी टिप्पणी नहीं मिलेगी।
संतति को संतान कर दो तो बात और डाइरेक्ट हो जाय।
वसंत पंचमी के दिन पढ़ने को सम्हार रखे थे इसे रीडर में !
जवाब देंहटाएंसमझ रहे हैं न भईया आज का महात्म्य !
याद आ गया वसंत का गणित समझाने वाला वरद-पुत्र !
अरे! ओ बसंती पवन पागल..असर कर गई क्या?
जवाब देंहटाएंगायत्री छंद में आपकी कृति....आपकी कविता....प्रेमोन्मुक्त भाव हो, समर्पण हो या आसक्ति या फिर काव्य लेखन की विधा, एक सम्पूर्ण कविता लगी है...सच कहें तो बहुत अच्छी बनी है....!
जवाब देंहटाएंकविता वाकई बहुत अच्छी है बड़े बड़ों की अनुशंसायें आ गईं !
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
जवाब देंहटाएंआप पर ,
अनंग / रति प्रिय की
इस बसंत पर्व पर
माँ सरस्वती की कृपा रहे ,
स स्नेह्म
- लावण्या
टूटे बन्ध देह मुक्त
जवाब देंहटाएंतड़प उठी बिजली
लयकारी सिसकी की ...
टूटना देह के बन्धनों का ..... जीवन की लय में ... बहुत ही सुंदर रचना ..... बसंत के आगमन में ............ आपको बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकमनाएँ .......
आपने गीत को अपना स्नेह दिया आभारी हूँ. इस बहाने आपके रचना संसार से परिचित होने का सौभाग्य मिला. आपको पढकर पन्त जी याद हो आये.
जवाब देंहटाएंस्मरण दिवस प्रिये
निमंत्रण देह गन्ध
पहली बेला महकी।
वलय वृत्त गणित
सौन्दर्य सृष्टि अपार
केवल सन्तति हेतु ?
ऐसी भाषा और छंद का अदभुत निर्वाह वाह!
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जवाब देंहटाएं.
.
वाह,
सहज विषय पर दुरूह रचना,
आभार!
कई दिनों से मज़ा नहीं आ रहा...पता नहीं क्यूं...
आपके ब्लाग पर पहली बार आई हूँ। अच्छी कवितायें ब्लागजगत में कम पढने को मिलती हैं। आप बहुत अच्छा लिखते हैं।
जवाब देंहटाएंभैया, यहाँ तो आपने ग़जब का भाव रच दिया है, भाव क्या पूरी पिक्चर बना डाली है। खजुराहों वाली टिप्पणी सब कुछ कह देती है। :)
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं बिन्दास कविता।
खालिस ‘ब्लॉगरी’ नामक विषय पर कुछ भी धकेलने वाले यहाँ से कुछ सीखें तो अच्छा हो।