पारदर्शी पात्र
सान्द्र घोल।
तुमने डाल दी
एक स्याही की टिकिया
धीरे से।
रंग की उठान
धीरे धीरे
ले रही आकार।
जैसे समिधा
निर्धूम प्रज्वलित,
समय विलम्बित
बँट गया फ्रेम दर फ्रेम।
..कि
आखिरी आहुति सी
खुल गई
अभिव्यक्ति एकदम से !
तुम्हारी कविताई
बना गई मुझे द्रष्टा
एक ऋचा की।
आखिरी आहुति सी
जवाब देंहटाएंखुल गई
अभिव्यक्ति एकदम से !
कई बार आखिरी आहुति... ही सब कुछ बदल देती है.... कविता की यह शैली मैंने कहीं नहीं देखी है... कविताई में भाव के साथ साथ शैली भी बहुत मायने रखती है..... जिसे आपने न्यायपूर्वक लिखा है... कविता बहुत अच्छी लगी.... बहुत पहले देवेन्द्र आर्य जी को इसी शैली में लिखते पढ़ा था... पर आपकी शैली बहुत अच्छी लगी....
वैसे यह ऋचा कौन है?
मुझे कविता बहुत पसंद आई. आपकी शैली और रचना क़ाबिले तारीफ़ है.
जवाब देंहटाएंbahoot badhiya.
जवाब देंहटाएं@ महफूज़ अली
जवाब देंहटाएंपसन्द के लिए धन्यवाद सर जी।
वैदिक संहिताएँ ऋचाओं में लिखी गई हैं, जिन्हें मंत्र भी कहते हैं। गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार इन ऋचाओं के अर्थ ऋषियों ने बताए हैं। उन्हें द्रष्टा कहा गया। ऋचाएँ छन्द बद्ध होती हैं और कुछ में अति उत्तम श्रेणी की कविताई भी मिलती है।
आपकी दृष्टि को नमन...
जवाब देंहटाएंवैसे, इस ऋचा पर कुछ प्रकाश डाल दें तो बेहतर:)
आप तो 'ऋषि' हुए न !
जवाब देंहटाएंमंत्र द्रष्टा जो होता है ठीक वही ! ... हमें भी मुनि ही / भी बनाइये न !
बचपन का दवात वाला बिम्ब जिसमें स्याही घोली
जाती थी , याद आ गया .. आभार , साहब !
मुनिवर..
जवाब देंहटाएंमन पारदर्शी
में डल गयी
भाव की टिकिया
रंग उठते गए
और ऋचाएं बनती गईं
आपकी कविता आकार प्रकार लेकर खड़ी हो गयी है...कई इन्द्रधनुषी रंगों में..
निशब्द शब्द बोल दे तो आज बोल दे...
इन काव्य प्रयोगों को कोई ठहराव मिल जाये तो बोल दीजियेगा
जवाब देंहटाएंइति
आदरणिय अरविन्द जी, मुझे तो अभी यह सब ‘अथ’ लगता है। ‘इति’ तो अनन्त दूरी पर होगी।
जवाब देंहटाएंवाह,काबिले तारीफ़ रचना.
जवाब देंहटाएं----sanjeeda rachna,bdhai---
जवाब देंहटाएंइन लाइनों को लिखने वाला तो ऋत्विज हुआ !
जवाब देंहटाएंwaaaaaaaaaaah...pehli baar yahan aana hua or man prasann ho gaya...
जवाब देंहटाएंशब्द समिधा ....भाव आहुति ...ऋचाओं ने आकार ले लिया ....किसी की कविताओ में ....!!
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी
जवाब देंहटाएंकविता तो काफी अच्छी है....बेहतर होता कि हिंदी के ही शब्द प्रयोग किये जाते....महज एक शब्द अंग्रेजी का....कहीं खटकता है.....! अन्यथा न लें..कविता के लिए आप बधाई के पात्र हैं
नये अर्थ खोजने हों तो आपकी रचना से बेहतर कुछ नही ........ आपकी शैली, आपका अंदाज जुदा है ..........
जवाब देंहटाएं@singhsdm
जवाब देंहटाएंसिंह साहब, धन्यवाद। थोड़ी देर के लिए 'फ्रेम' शब्द पर मैं अटका था लेकिन जो प्रभाव चाह रहा था वह इसी शब्द से आ रहा था। भारतीय काल गणना में मुहुर्त क्षण से आगे आता है। यदि 'फ्रेम दर फ्रेम' की जगह 'मुहुर्तों में' कर दें तो कैसा हो?
स्याही की टिकिया ..यह बिम्ब ज़ोरदार है ।
जवाब देंहटाएंआखिरी आहुति सी
जवाब देंहटाएंखुल गई
अभिव्यक्ति एकदम से !
---क्या कहें? ये तो पंक्तियाँ कहानी सी समेटे हुए हैं..