संक्षिप्त अभिव्यक्ति के गूढ़ार्थ और कविता पर शिल्प के बोझ पर बहस अपेक्षित है।
देहात - साँझ, रात, भिनसारसाँझ नहीं ठाँव तारों के पाँव। पीपल पल पल जुगनू द्ल। पावर रोशनी कट ढेबरी सरपट। चाँद फेंक प्रकाश लानटेन भँड़ास। मच्छर गुमधुम लोग सुमसुम। श्वान संभोग दल रव बल छल। फूल पौधों के शूल रजनी दुकूल। ओस रही कोस बारिश भरोस। सेंक रोटी फेंक चूल्हा टेक। बयार हरसिंगार धरती छतनार। | 'हाय क्यूँ'तौलिया सूखा आज कोई न रोया बाथरूम में। सड़क टूटी साहब को दी कार ठीकेदार ने। पार्टी खलाश जमादार न आया निर्धन मौज। गड़े हैं पोल बिजली है लापता कुत्तों की मूत। टँगी हैं टाँगें ढाबे में संसद में यही है दिल्ली। अब हाय क्यूँ पड़ोसी निहाल है इसीलिए तो । कवि परेशाँ बहर में कसर भाव गड्ढे में। |
हाय क्यूं ,नहीं, बस हां हा हा
जवाब देंहटाएंबहर में कसर
भाव गड्ढे में।
कवि परेशाँ
जवाब देंहटाएंबहर में कसर
भाव गड्ढे में।
हा हा हा-मै भी परेशान हुँ इन ग़ढढों से।:)
ग्राम्य और शहरी जीवन की ऐसी
जवाब देंहटाएंमर्मान्तक भयानक तुलना :):)....!!
पुरानी: बायें कॉलम में:
जवाब देंहटाएंकवि की झौंक
पाठक की मौत
टिपियाने की सांसत...
नई: दायें कॉलम में..नारंगी रंग से:
कवि हँसा
श्रोता फंसा
टिप्पणी में धंसा!!
-जय हो!!!
वाह -वाह.
जवाब देंहटाएंशीर्षक नें तो मन मोह लिया ,और कविता -क्या कहें?
जवाब देंहटाएंसुंदर मनभावन टीपें!
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंराव साहेब !
जवाब देंहटाएंआपकी शैली की
नक़ल में उत्तर की कोशिश कर रहा हूँ ---
..........................
राव'-वाणी पर
प्रश्न कुछ मेरे
या कहें उत्तर ..
.........................
@ ''कवि परेशाँ
बहर में कसर
भाव गड्ढे में।''
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बहर व भाव
हैं जुदा इतने
यह कहा किसने ?
.........................
ठोंक डाला
अकल का ताला
वजह क्या है ?
........................
हाँ यक बात और ,,,
जवाब देंहटाएंहिमांशु भाई की पुरानी 'टिपिया'
को उखाड़/उधार ले आया ---
'' पूरा-पूरी
इच्छा पूरी
त्रिपंक्ति पूरी । आभार । ''
देखित हन कि का नवा तीपेंगे ई बनारसी- ब्लागैया ,,,
@ बहर पुं. [अ.बह्र] 1.बहुत बड़ा जलाशय या नदी। 2.समुद्र। 3.उर्दू फारसी कविताओं का कोई छन्द। जैसे-इस बहर में मैने एक गजल लिखी है। अव्य. [फा.ब+हर] 1.हर एक। प्रत्येक। 2.इस प्रकार से। इस तरह से। जैसे-बहर हाल=प्रत्येक दसा में।
जवाब देंहटाएंमैंने बहर का अर्थ छन्द लिया है। छन्द और भाव कैसे अलग अलग हो सकते हैं या बेमतलब जुड़ाव से चल सकते हैं यह परम आदरणीय महापंडित महाकवि केशवदास जी दर्शा गए हैं।
बात बस इतनी है कि शिल्प का बोझ कहीं संकुचित करता है। दाहिनी तरफ वालियों में हाइकू के वर्ण विन्यास हैं, जब कि बाईं तरफ ऐसा कोई विन्यास नहीं है। छन्द विन्यास के दबाव को प्रकारांतर से 'हाय क्यूँ' कहा है। हाइकू - हाय क्यूँ?
जरा इस जगह की कविता को देखिए:
http://ek-ziddi-dhun.blogspot.com/2010/01/blog-post_7845.html
अजी महराज,
जवाब देंहटाएंआपकी क्या बात है...रोज नए प्रयोग....रोज नया इश्टाइल...
हाय क्यूँ किया
पेट में दर्द है क्या ??
आपका इहो अवतार झकास..धूरपटास है....लगे रहिये...
गिरिजेश जी,
जवाब देंहटाएंआपकी यह शैली बहुत मन भाई है...
हम भी बैठ गए लिखने ,
बताइयेगा ज़रा कैसी बनी है....
खटिया बिन नेवार
हो जाओ उ पार
बुढ़वा है सूतल
कुकुरवा खटिया तर
कुइयां में बाल्टी
नहाओ मार पालथी
वाह वाह ... हम तो बस आप जैसे गुणिज़ानों की जुगलबंदी का आनंद ले रहे हैं .........
जवाब देंहटाएंयहां शुरू हुआ जुगलबंदी का खेल काफ़ी कुछ कह रहा है...
जवाब देंहटाएंऐसा लगा कि गंभीर कथ्य के बिना...
सिर्फ़ शिल्प का खेल...
ऐसे ही अभिजात्य खेल बन कर रह जाता है...
कुछ हाय-क्यूं अच्छे लगे...
कुरकुरे !
जवाब देंहटाएंटेढ़ा है पर अच्छा है !
"पार्टी खलाश
जवाब देंहटाएंजमादार न आया
निर्धन मौज।"
--इसमें ’खलाश’ कहीं यह वाला ’खलास’ तो नहीं ! अगर नहीं तो मेरी यह टिप्पणी ’खलास’ समझिये !
@"कवि परेशाँ
जवाब देंहटाएंबहर में कसर
भाव गड्ढे में।"
-- पहले मतलब समझता हूँ - "बहर में कसर रहने से भाव गड्ढे में चला गया है" ।
अगर अर्थ यही है तो असहमत हूँ ! मेरी असहमति आपकी दोनों उदाहरण-कवितायें ही स्पष्ट करेंगी !
अर्थ दूसरा है तो , टिप्पणी दूसरी होगी !