साँझ
नहीं ठाँव
तारों के पाँव।
पीपल
पल पल
जुगनू द्ल।
गीत
सुने माय
मुँह बाय।
पावर
रोशनी कट
ढेबरी सरपट।
चाँद
फेंक प्रकाश
लानटेन भँड़ास।
मच्छर
गुमधुम
लोग सुमसुम।
श्वान
संभोग दल
रव बल छल।
फूल
पौधों के शूल
रजनी दुकूल।
ओस
रही कोस
बारिश भरोस।
....
....
बयार
हरसिंगार
धरती छतनार।
_________
ये हिमांशु जी की टोकारी पर:
सेंक
रोटी फेंक
चूल्हा टेक।
__________
पावर
जवाब देंहटाएंरोशनी कट
ढेबरी सरपट।
चाँद
फेंक प्रकाश
लानटेन भँड़ास।
सिर में हो रही ठक ठाक ठक ..!!
यह नवगीत के शिल्प मे है लेकिन अपने नवीनतम बिम्बों और ध्वनि के नये प्रयोगों की वजह से अलग ही प्रभाव उत्पन्न होता है । बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी और सार्थक क्षणिकाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना .......जिसमे लय और ताल दोनो ही है .........अतिसुन्दर.......
जवाब देंहटाएंवाह यह तो मौसमी चित्रण की काव्य फुल्झडियां हैं !
जवाब देंहटाएंकितने आयाम हैं साहेब !
जवाब देंहटाएंचूल्हा रह गया ।
लगता है कहीं पूरी गुंथी हुई माला रखी थी, उससे कुछ मनके बिखरा दिये !
शहर में तो क़ायदे से न साँझ होती होगी, न रात और न भिनसार ही । है न ! इसलिये ही देहात की साँझ,रात,भिनसार ठहर गयी होगी मन में । आभार ।
नतमस्तक हूँ, रचना बेहतरीन लगी, कम शब्दों में कई आयाम बाहें फैलाये हुए................
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
पूरा-पूरी
जवाब देंहटाएंइच्छा पूरी
त्रिपंक्ति पूरी । आभार ।
ए भाई ऐसी एक-दो ठो कविता और लिखो ना । इसे सस्वर पढ़ने मे बड़ा मज़ा आ रहा है ..इसलिये दोबारा कह रहा हूँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्र उकेरा है गाँव की साँझ का । लाजवाब शैली मे बधाई
जवाब देंहटाएंएक उम्दा शब्द चित्र...
जवाब देंहटाएंवाणी जी ने भी क्या खूब कहा है...
ठाक
ठका ठक
ठक ठक ठाक...
हिमांशु के शब्दों में...त्रिपंक्ति पूरी...
girijesh ji
जवाब देंहटाएंnamaskar
aaj aapki kavita padhkar man ko badha sakun sa mila , ye ek nayi tarah ki kavita th , jisne era man moh liya .. kam shabdo me bimb kitne ache ban padhe hai ..
meri badhai sweekar kare..
dhanywad
vijay
www.poemofvijay.blogspot.com