शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

पुरानी डायरी से -4 : काम कविता

13 दिसम्बर 1993, समय: ________                               '____ के लिए' 
  
कभी कभी सोचता हूँ
कितना सुन्दर होगा तुम्हारा शरीर !
जिसका प्रगाढ़ आलिंगन करते हैं तुम्हारे वस्त्र 
और बातें करते हैं तुम्हारे अंग अंग से 
(मुझे ईर्ष्या होती है !)
कैसा होगा वह शरीर !


तुलसी के पत्ते पर
प्रात:काल में चमकती 
जुड़वा ओस की बूँदे
धवल पीन युगल वे स्तन
क्या वैसे ही होंगे ?


सुदूर फैला सपाट मैदान
सूना सा शांत सौन्दर्य 
क्षितिज पर कहीं पोखरे का आभास।
तुम्हारा नाभिस्थल ऐसा ही होगा।


हिमश्वेत उन्नत श्रृंगों के बीच 
बहती विद्रोही पहाड़ी नदी
परिपूर्ण यौवन वेगमय प्रवाह।
हाँ ऐसा ही होगा तुम्हारा जघन स्थल।
....
कभी कभी सोचता हूँ
कितना सुन्दर होगा तुम्हारा शरीर !
जिसका प्रगाढ़ आलिंगन करते हैं तुम्हारे वस्त्र ।
कभी कभी मैं सोचता हूँ। 

12 टिप्‍पणियां:

  1. नारी देह के लैंडस्केप पर पर्यटन को आमंत्रित करती मनोरम रचना !

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  2. सुन्दर और रोमांचक....बाकि श्रीयुत अरविन्द जी कह ही गए हैं...

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  3. पढ़ कर लगा सौन्दर्य लहरी का आधुनिक अवतार हो गया है ।

    बोल्ड एण्ड ब्यूटीफुल ! अदभुत !
    एक बात कहूँ - यह पवित्र-सौन्दर्य अवगाहन इतना संक्षिप्त क्यों?

    एक और बात रिझा गयी ! हर अंग की उपमा नयी- ओस की बूँदें, पोखरा, प्रवहनशील नदी - सब कुछ तरल, पारदर्शी, जल युक्त !

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  4. Arre wah aap to Malik Mohammad Jayasee ke biradar ho. Vaisa hi padmavat vala nakh-shikh varnan. Vaise Kavita badi refreshing hai. Guru you are harfanmaula

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  5. जोर से कहने का मन कर रहा है 'जियो ! जियो रे मेरे लंठ!' क्या लाइनें लिख दी है. उम्र क्या थी तब ? मन की बातें तो सब खोल के धर दिए थे तब ही. गनीमत है संभाल के रखा है.

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  6. कभी कभी सोचता हूँ

    कितना सुन्दर होगा तुम्हारा शरीर !

    जिसका प्रगाढ़ आलिंगन करते हैं तुम्हारे वस्त्र ।

    कभी कभी मैं सोचता हूँ।
    wah kya baat hai
    wakai bahut sunder
    bahut achalaga padhker

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  7. भाई गिरिजेश जी ,आज आपका ब्लॉग देखा ,शानदार कवितायेँ लिखते हो आप ,आनंद आगया ,बहुत देर से आपके पास आया ,अफ़सोस है/
    देर आये ,दुरुस्त आये मान कर संतोष करना है /
    मेरी बहुत बहुत शुभ कामनाएं /
    सादर ,
    डॉ.भूपेन्द्र

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  8. सुन्दर शरीर की कल्पना...

    कल्पना और सौन्दर्य चाह रही है अभी...

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  9. देश काल की बात आपने खाली छोड़ राखी है उसे कौन भरेगा उस रिक्ति को भी भर देते तो कम से कम प्रेरणा स्रोत का तो पता चलता भौगोलिक ज्ञान की अभिव्यंजना सुन्दर है यह अवश्य ही रात्रि के तीसरे प्रहर स्वप्न से अचानक जागने के बाद कविता रची गई होगी ऐसा मेरा अनुमान है इसे काम कविता कहना अनुचित है इसे तो काम की कविता कहा जाना चाहिए kanchanjangha kaa naam shayad isi kaaran pada hoga

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  10. महिलाओं की कविता मैं रूचि नहीं लगती वर्ना कोई महिला तो अपने विचार व्यक्त करती।

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  11. Girijesh ji adbhut saundarya ka varnan kiya hai apne
    www.voheart.blogspot.com
    avashya dekhe

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