गहन चलो काला पहन चलो मन चलो उजले कफन चलो। |
धंसती है लीक बहके कदम चलो रस्ते पे वे पटरी सहम चलो हँसते हैं गाल आँखों बहम चलो। | ऊँची उनकी नाक रस्ते नमन चलो पूछे हैं वो हाले कहन चलो करनी है बात जीभे कटन चलो ना सुनें जो वो चुपके निकल चलो। |
दूरी है क्या पाथे बिखर चलो देखे हैं वे अन्धे !ठहर चलो न तलवे जमीन चप्पल पहन चलो। | गोल गोल दिखते नज़रें उठन चलो सिकोड़ी जो नाक नजरें झुकन चलो पापी दिमाग कोंचे बहम चलो। |
शरम का बहम दिखता अहम चलो काला पहन चलो मनचलों ! |
समझने के प्रयास में लगा हूँ.
जवाब देंहटाएंएक लाइना से बोहनी ही बिगाड़ दिए ;)
जवाब देंहटाएंठिठोली थी। आप आए हम कृतार्थ भए।
धंसती है लीक
जवाब देंहटाएंबहके कदम चलो
रस्ते पे वे
पटरी सहम चलो
हँसते हैं गाल
आँखों बहम चलो।
लो भाई हो गयी ना कई लाईन :)
सुन्दर
हे भईया यी कौनो नवकवा पिंगल क कविता है का मगर बहुत नीमन लागत बा हो -
जवाब देंहटाएंसुगम अगम मृदु मंजु कठोरे,अर्थ अमित अति आखर थोरे
निज मुख मुकुर मुकुर निज पानी गहि न जाई अस अद्भुत बानी
शरद कोकास जी आईये अब समालोचना के लिए !
न समझ में आये वो चुपके निकल चलो
जवाब देंहटाएंठिठोली तो नहीं...अब समझ गये हैं और आनन्द प्राप्त भये. बहुत उम्दा लिखे हो भाई. बधाई.
जवाब देंहटाएंलो आ गये .. भैया ..
जवाब देंहटाएंये सब प्रयाण गीत हैं और कहीं आव्हान है कही आदेश है और कही निवेदन है जैसे..गहन चलो - यह गहराई तक जाने के लिये
काला पहन चलो - यह विरोध के लिये
मन चलो -यह मन के लिये आदेश है
उजले कफन चलो -यह मुक्ति के लिये
बस इसी तर्ह इन कविताओ मे डूबिये और मतलब निकाल लीजिये .. मै भी अब चला ..तुम भी चलो..
वाह! करिया पहनो चाहे उज्जर
जवाब देंहटाएंभीड़ बहुत है
चफन चलो!
Yahan hai kuch gadbad..nikal chalo
जवाब देंहटाएंवाह भई ये क्या हैं...
जवाब देंहटाएंऔर इनकी बक्सा बंद प्रस्तुति...
आप भी कुछ नया कहते-करते रहते हैं...
अड़बड़िया कड़बड़...गजब है...
कुछ कुछ समझ में आया ......
जवाब देंहटाएंराइट हैण्ड साइड वाले दो तो 'अपने हिसाब से' भरपूर समझ आये हमें. और मजेदार भी लगे. बाकियों को शायद उस मूड में ले नहीं पाया :)
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