बुधवार, 21 अक्टूबर 2009

पुरानी डायरी से - 6 : क्या गाऊँ मैं गीत


5 अप्रैल 1993, समय: सन्ध्या 06:45                                                                क्या गाऊँ मैं गीत

मेरे मन के मीत
क्या गाऊँ मैं गीत।


धुएँ में जीता श्मशान
चलती लाशें लोग।
कागज के इन फूलों में
उलझी सारी प्रीत।
क्या गाऊँ मैं गीत ?


उजली रात-तिमिर विहान
अन्धा जीवन भोग !
कितना सुख है शूलों में,
दु:खी बुद्ध हैं भीत।
क्या गाऊँ मैं गीत?


मेरे मन के मीत। 

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी ये कविता पसंद आई....उम्मीद है आगे भी इस तरह की रचना आपके ब्लॉग पर देखने को मिलेगी

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  2. सुन्दर कविता : आभार पुरानी डायरी का

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  3. पुरानी डायरी भी कमाल है इतना सुन्दर गीत्! शुभकामनायें

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  4. यह तो पुरानी डायरी का नया गीत निकल आया ! स्तब्ध करता !

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  5. उस शाम को बुद्ध दर्शन में खो गए थे... !

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  6. उजली रात-तिमिर विहान
    अन्धा जीवन भोग !
    कितना सुख है शूलों में,
    दु:खी बुद्ध हैं भीत।
    क्या गाऊँ मैं गीत?

    -बेहतरीन!! गजब!

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  7. बेहतरीन लिखा है.
    अफ़सोस होता है अपनी डायरियां क्यों नष्ट कर डाली ..

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  8. सुन्दर रचना है ......... आपकी डायरी कमाल की है ..........

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  9. धुएँ में जीता श्मशान
    चलती लाशें लोग।
    कागज के इन फूलों में
    उलझी सारी प्रीत।
    क्या गाऊँ मैं गीत ?

    बहुत खूब!

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