जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।
नचाती, दुलराती, बहकाती सी कविता... अरे !! मन पतंग हुआ जाता है...आनंद के आवर्तों में.... सम्हल जाए तो अच्छा है ..मांझा जो कुछ कम हो गया है....:):) क्या लिखते हैं बाप रे.....!!
पिछली कई कविताओं में आई टिप्पणियाँ देख कर सोच रहा हूँ, संक्रामक हैं आप अपनी कविताई के ढंग में । ढंग से टिप्पणी करने वाले भी आपके प्रभाव में बेढंगी (?) टिप्पणियाँ करने लग गए हैं । एक नयी धारा ! अब अरविन्द जी भी !
आवर्त शब्द ने ध्यान खींचा है बंधु।
जवाब देंहटाएंअब तक केमिस्ट्री के केवल आवर्त सारणी से ही परिचय था, नहीं जानता था कविता में इतना सुंदर आवर्त शब्द का प्रयोग हो सकता है।
बहुत खूब।
बहुत बढ़िया. याद आ गयीं वह बरेली-बदायूं की गर्मियों दोपहरियाँ. और याद आया पतंग-चोर फीरोज़ का लंगड़.
जवाब देंहटाएंजम गई
जवाब देंहटाएंफिर
बढ़ी आवर्तों में
बरसी, चहकी
रसभरी फुहार
भिगो गयी
मन का पोर-पोर।
मन भाया
हरषाया
दिल से लगाया
मुस्काया
बारम्बार डुबाया मन को
आनन्द आवर्तों में।
गूँज उठी जयजयकार
कविता के भक्तों की
युगनद्ध जो हुए थे
प्रतिभा और शब्द।
दो दिन की दूरी पर है देखना आनंद अवर्तों में ..
जवाब देंहटाएंसंक्रांति पर जयपुर पूरा छत पर होता है और आसमान पतंगों से अटा ...!!
नचाती, दुलराती, बहकाती सी कविता...
जवाब देंहटाएंअरे !! मन पतंग हुआ जाता है...आनंद के आवर्तों में....
सम्हल जाए तो अच्छा है ..मांझा जो कुछ कम हो गया है....:):)
क्या लिखते हैं बाप रे.....!!
बहुत सुंदर! बिलकुल एक गान की तरह।
जवाब देंहटाएंधरती और आकाश एक हो गया !
जवाब देंहटाएंबच्चे और पतंग ...
'' गूँज उठी किलकारी
बच्चों की।
युगनद्ध जो हुए थे
पतंग और पवन। ''
.......... आभार ,,,
वाह,बेहतरीन.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी की टिप्पणी भी खूब
'आवर्तों में' ...गजब का आनंद भर गया..मन में.
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जवाब देंहटाएं.
.
अहा हा,
आनन्द मग्न हुऐ।
गिरिजेश जी हम तो डूब गए इस भंवर में .....!!
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामना ....!!
जवाब देंहटाएंयुग नद्ध
जवाब देंहटाएंसन्नद्ध
दो
तन
मन
स्वयंस्फूर्त
सृजन
धड़कन
पल पल
आत्मविस्मृत
सा मन
क्षण क्षण
ठीक ही है ........लेकिन मुझे नही लगता की इसकी कोई ख़ास जरूरत थी ! भाग १ अपने आप में समग्र है !
जवाब देंहटाएंसज गई
जवाब देंहटाएंफिर
उड़ी आवर्तों में
सिहरी, लहकी
खुली बहकी
लहर लहर
नाच उठी।
सहलाया
दुलराया
सीने से लगा
बहकाया
दे सहारा घुमाया
आनन्द आवर्तों में।
एज यूजुअल , इसमे आपकी कलाकारी दर्शनीय है ! :)
@फोटो
जवाब देंहटाएंहर कविता में अपनी ही फोटो क्यों लगा देते है ?
@ आर्जव
जवाब देंहटाएंअरे भाई हर कड़ी स्वतंत्र है। युगनद्ध थीम है।
पिछली कई कविताओं में आई टिप्पणियाँ देख कर सोच रहा हूँ, संक्रामक हैं आप अपनी कविताई के ढंग में ।
जवाब देंहटाएंढंग से टिप्पणी करने वाले भी आपके प्रभाव में बेढंगी (?) टिप्पणियाँ करने लग गए हैं । एक नयी धारा ! अब अरविन्द जी भी !
युगनद्ध-१,२....श्रॄंखला तो चल सकती है यह !
जवाब देंहटाएंसच कहूँ ! सम्मोहन-सा कर दिया है भईया !