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बुधवार, 19 मई 2010

युगनद्ध - 4

तुम्हारी याद में गुलाब रोपे थे 
फूलों की जगह बस काँटे खिले 
हवा लाल नहीं 
जमीन सन गई है 
लाल लाल 
अपना रोपा उखाड़ने चला था।

हरियाली से ललाई टपक जाती है 
जी के फाँस ग़र हिलाता हूँ
.. तुम अब भी घाव हरे कर सकती हो। 


मैं कितना अद्भुत प्रेमी हूँ  
हरियाली में ढूढ़ता हूँ
अब भी वह लाली
जब सूरज लजाया था -
सुबह सुबह पहली बार 
हम जो युगनद्ध हुए थे ।

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

युगनद्ध -3: आ रही होली

सड़क पर बिछे पत्ते
हुलस हवा खड़काय बोली
आ रही होली।


पुरा' बसन उतार दी
फुनगियाँ उगने लगीं
शोख हो गई, न भोली
धरा गा रही होली।


रस भरे अँग अंग अंगना
हरसाय सहला पवन सजना 
भर भर उछाह उठन ओढ़ी 
सजी धानी छींट चोली। 


शहर गाँव चौरा' तिराहे
लोग बेशरम बाग बउराए
साजते लकड़ी की डोली 
हो फाग आग युगनद्ध होली । 

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

युगनद्ध - 2

युगनद्ध - 1



सज गई
फिर 
उड़ी आवर्तों में 
सिहरी, लहकी
खुली बहकी
लहर लहर
नाच उठी।

सहलाया
दुलराया
सीने से लगा
बहकाया
दे सहारा घुमाया
आनन्द आवर्तों में।


गूँज उठी किलकारी 
बच्चों की।
युगनद्ध जो हुए थे
पतंग और पवन।

शनिवार, 9 जनवरी 2010

युगनद्ध - 1

सोचती रही
कपोल पर ढुलक आए आँसू 
वापस आँखों में ले ले।


सोचता रहा
निकल आई आह सिसकी 
शरीर में वापस ले ले।


मिलन और बिछुड़न -
युगनद्ध ।