तुम्हारी याद में गुलाब रोपे थे
फूलों की जगह बस काँटे खिले
हवा लाल नहीं
जमीन सन गई है
लाल लाल
अपना रोपा उखाड़ने चला था।
हरियाली से ललाई टपक जाती है
जी के फाँस ग़र हिलाता हूँ
.. तुम अब भी घाव हरे कर सकती हो।
मैं कितना अद्भुत प्रेमी हूँ
हरियाली में ढूढ़ता हूँ
अब भी वह लाली
जब सूरज लजाया था -
सुबह सुबह पहली बार
हम जो युगनद्ध हुए थे ।
Very Good...
जवाब देंहटाएंwaah milan ki baat itne shaandaar shabdon me...
जवाब देंहटाएंबहुत ही मधुर मिलन है आप की इस कविता मै
जवाब देंहटाएंपढ़ी.
जवाब देंहटाएंढूढना ज़ारी रखे
जवाब देंहटाएंअभी भी वह लाली बरकरार है
कुछ हरे पत्तो ने
उसे छिपा रखा है
दोनों कविताओं के लिए आभार!
जवाब देंहटाएं@ तुम्हारी याद में गुलाब रोपे थे
जवाब देंहटाएंफूलों की जगह बस काँटे खिले
इसका साक्षात भुक्तभोगी हूँ। ईश्वर को याद करते हुए तुलसी का बिरवा रोपा था....बड़ा होते होते काँटा बन गया।
काँटेदार भक्ति :)
कविता सुंदर है।
दोनों ही सुन्दर । गहरी और रोमांचित कर देने वाली ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंआप '9' अतिसाहसी टिप्पणीकारों को माबदौलत दरिद्रराज 'नवरत्न' की उपाधि से भूषित करते हैं।
जवाब देंहटाएंजय हो !
बाकियों के लिए अर्ज किया है:
"पर्दे की आड़ नैन मिलाते रहे
हटाया जो पर्दा नज़रें फेर लीं।"
@ पर्दे की आड़ नैन मिलाते रहे
जवाब देंहटाएंहटाया जो पर्दा नज़रें फेर लीं।
एक पर्दा तो जरुरी है ...
फिर भी
हरियाली से ललाई टपक जाती है
जी के फाँस ग़र हिलाता हूँ
तुम अब भी घाव हरे कर सकती हो।
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ...
चित्र न देते तब मैं कविता के बहुत से अर्थ करता !
जवाब देंहटाएंयह पंक्तियाँ क्या एक बात कहती हैं...
"मैं कितना अद्भुत प्रेमी हूँ
हरियाली में ढूढ़ता हूँ
अब भी वह लाली
जब सूरज लजाया था -
सुबह सुबह पहली बार
हम जो युगनद्ध हुए थे ।"
@ हिमांशु जी,
जवाब देंहटाएंआप से एकदम सहमत हूँ। जिस भावभूमि में यह पंक्तियाँ रच गईं वह इतनी स्थूल नहीं थी। लेकिन कुछ तो लंठई और कुछ हिन्दी ब्लॉगरी में कथित 'शुचिता' समर्थकों को झटका देने के लिए यह चित्र लगाया।
आप मेरी अपेक्षा पर एकदम खरे उतरे हैं।
आप की टिप्पणियाँ जाने कितने सम्बल देती हैं। लगता है कि हाँ, कम से कम एक व्यक्ति है जो समझ सकता है। समालोचना कर सकता है। कह सकता है। अनुरोध है कि आप बहुत न भी सही लेकिन कम से कम 'एक अर्थ' तो कर ही दीजिए।
बाउ के उपर आप की लेखमाला ने वे अर्थ भी उजागर किए जो मेरे मन में दूर दूर तक नहीं थे।
आभार।