बारिश अम्मा ने नहलाया
दिन हुआ दिगम्बर धुला धुला
जागे लोगों के कपड़े पहने
सूरज संग स्कूल चला।
हँसी ठिठोली बाँह मरोड़ी
आसमान सूरज चढ़ धाया
कुट्टी कर ली दिन गुस्साया
छाँह किताबें पटक चला।
सूरज झाँके दिन भी ताके
हवा लाल के बँटे बतासे
भर भर पेट दिन ने खाया
हँसा, सूरज को कुढ़ता पाया।
ढली दुपहरी सूरज उतरा
पेंड़ फुनगियाँ फलती अमियाँ
यारी जुड़ गइ कुट्टी तोड़ी
दोनों ने जब खट्टी पाया।
थके पाँव कपड़े हैं मैले
छाँह किताबें लाद आ गए
संझा दादी की झिड़क सुनी
रैना दी ने ठोंक सुलाया ।
संझा दादी की झिड़क सुनी
जवाब देंहटाएंरैना दी ने ठोंक सुलाया ...
सूरज ने क्या क्या रंग दिखाए ...कभी कुट्टी कभी यारी ...
मगर पड़ी रैना दी सब पर भारी ...
वाह ...!!
वाह!! बहुत बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंवाह! अत्युत्तम!
जवाब देंहटाएंकुट्टी कर ली दिन गुस्साया
जवाब देंहटाएंछाँह किताबें पटक चला।
बहुत खूब।
सुंदर भाव और सुंदर कविता।
सूर्य हमारी दिनचर्या तय करता है। यह बात शायद हम माँ की गोद में ही सीख जाते हैं।
जवाब देंहटाएं@ संझा दादी की झिड़क सुनी
जवाब देंहटाएंरैना दी ने ठोंक सुलाया ।
--------- यही रैना दी प्यारे - डरावने - मुस्काऊ सपने भी
दिखवाती हैं !
लीजिये आप भी ठोंकक नींद !
मठल्लो कविता ! आभार !
waah rochak aur sukh ka anubhav karane wali rachna...kitna badhuya manvikaran kiya...masoom sa...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबहुत खुब जी, बहुत सुंदर लगी आप की यह कविता
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन बाल- कविता...
जवाब देंहटाएंबड़ों के कान उमेठती.....
पता नहीं हमरी टिप्पणी कठे गी...
जवाब देंहटाएंबड़ो के कान उमेठती...प्यारी सी बाल-कविता.....
बहुत प्यारी क्यूट सी कविता.. बहुत पसन्द आयी..
जवाब देंहटाएंकितनी क्यूट सी रचना है न ....
जवाब देंहटाएंयह रूप जमा ! सहज कविताई करते हैं तो रचना तो क्यूट आती ही है..आप भी क्यूट लगने लगते हैं !
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