रविवार, 6 दिसंबर 2009

मेरे राम ...


मेरे राम                                                                                             
तुम कसौटी नायक हो। 
तुम सार्वकालिक अभागे हो। 
000 
मेरे सामने जाने कितने बाली हैं
आधी क्या पूरी ताकत हर लेते हैं। 
उनसे लड़ना है लेकिन छिपना नहीं है 
मैं तुम्हारे समान कायर नहीं। 
मेरी कसौटी है 
भले न लड़ूँ लेकिन      
उनके लिए वृक्ष अवश्य बनूँ 
ताकि मेरी आड़ ले 
वे मार सकें तुम्हारे जैसे मानवाधिकारों के हनक को। 
मैं इस तरह से खुले में खड़ा लड़ता रहता हूँ 
देखो कितने घाव खाए हैं- 
मैं तुम्हारी तरह कायर नहीं।
000
सीता की अग्नि परीक्षा तो जाने हुई या नहीं
पर अभी भी तुम उसकी कसौटी पर कसे जाते हो 
मानो मेरी बात 
जाने कितने उदारवादी और (चाहे जो) वादी हो गए 
प्रगतिशील हो गए 
तुम्हें अग्नि परीक्षा की कसौटी पर कस कर। 
मैं तुम्हें कसता हूँ 
खग मृग तरु से सीता का हाल पूछ्ते तुम्हारे आँसुओं पर।
 सोचता हूँ कित्ता मूरख हूँ।
000
वे अभागे ऋषि महर्षि 
अस्थि क्षेत्रों में तप करते 
उनका मांस तक कोमल हो जाता था। 
सुस्वादु राक्षस भोज। 
राम तुम क्यों गए 
उन सुविधाभोगियों के लिए लड़ने
देखो  इस वातानुकूलित लाइब्रेरी में 
फोर्ड फाउंडेसन की स्कॉलरशिप जेब में डाले 
कितने लोग विमर्श कर रहे हैं 
इनकी कसौटी पर तुम हमेशा अपने को नकली पाओगे 
राम! तुम कितने अभागे हो।
000
जाने किन शक हूणों के चारण कवियों ने 
तुमसे शम्बूक वध करा डाला 
उसकी कसौटी से तुम्हें दलित साहित्य परख जाता है 
तुम उस कसौटी पर हो एक राजमद मत्त सम्राट
घनघोर वर्णवादी। 
मैं अपनी कसौटी हाथ लिए भकुवाया रहता हूँ 
कि तुम कसने से कुछ बच खुच गए हो 
तो कसूँ तुम्हें 
निषादराज के आलिंगन में 
चखूँ तुम्हें शबरी के जूठे बेरों में। 
कसूँ तुम्हें वानर भालुओं के 
उछाह भरे शौर्य पर
(दलित शोषित लिखूँ क्या
लेकिन वे तो इंसान हैं। 
बात चीत करते
परिवारी वानर भालुओं की तरह  
राक्षसों के आहार नहीं हैं वे)   
वह आत्मविश्वास कैसे भर गए थे उनमें 
खड़े हो गए वे नरमांस के आदियों के सामने 
आहार नहीं समाहार बन, उनका संहार बन। 
क्या वह केवल अपनी बीबी को वापस लाने को था 
ताकि तुम्हारा पौरुष फिर से गौरव पा सके
मेरी कसौटी कुछ अधिक बर्बर है 
लेकिन क्या करूँ
तुम्हें ऐसे न कसूँ तो प्रगतिशील कैसे कहाऊँ!
000
विभीषण को राक्षस राज्य सौंप 
सुग्रीव को वानर राज्य सौंप 
निषादराज को जंगल, नदी, वन का दायित्त्व सौंप 
तुम दरिद्र!
 ऐश्वर्य पा इतने बौरा गए!
हजारो अश्वमेध यज्ञ कर गए
राम !  
बड़ा विरोधाभासी चरित्र है तुम्हारा!! 
चरित्र की कसौटी पर तुम 'फेल' हो। 
000
लांछ्न  पर सीता को हकाल दिए 
कैसी पीड़ा थी राम! 
तुम्हारी रातें कैसी थीं राम 
भोग विलास आनन्द कैसे थे राम! 
सीता त्याग के बाद
मुआफ करना मुझे यह सब पूछ्ना है 
क्यों कि किसी सिरफिरे ने कहा है 
तुमने ग्यारह हजार साल राज किया 
सीता त्याग वाली बात उसी ने बताई थी 
सच ही कहा होगा। 
तुम नारी विरोधी ! 
मेरी कसौटी झूठ की कसौटी भले सही 
तुम्हें कसना तो होगा ही। 
(कोई मुझे बकवासी कह रहा है।)
000
तुम पाखंडी!
इतने निस्पृह अनासक्त थे तो 
सीता भू-प्रवेश के बाद 
लक्ष्मण को क्यों त्याग दिए
स्वयं आत्महत्या कर गए 
सरयू में छलांग लगा 
कैसी कसौटी थी वह राम
मुझे हैरानी होती है 
कोई तुम्हारी आत्महत्या की बात क्यों नहीं करता?
000
मेरे राम 
कसौटियाँ सेलेक्टिव हैं 
तुम हमेशा इन पर कसे जाओगे। 
तुम्हारे जन्मस्थान के कसौटी स्तम्भ नकली थे 
ढहा दिए गए।

इस ठिठुरती सर्दी में 
सम्राट राम ! 
किसी गरीब रिक्शेवाले के साथ  
तुम भी खुले में सो जाओगे। 
मेरी इस कविता पर कुछ लोग हँसेंगे 
कहेंगे इसे इसलिए दु:ख है कि 
सम्राट और रिक्शेवाला एक साथ क्यों हैं
मेरी कसौटी का संहार
मेरी बकवास और कंफ्यूजन का अंत 
हर सुबह होता है राम 
जब मैं सुनता हूँ 
जम्हाई लेते रिक्शेवाले के मुँह  से 
पहली आवाज़ 
हे राम 
मेरे राम . . .

22 टिप्‍पणियां:

  1. राम न तरेंगे इन आरोपों से। रिक्शावाला तर जायेगा भव सागर से। शायद यही राम की महत्ता है!

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  2. राष्ट्र नायक मर्यादा पुरुषोत्तम राम को बहुत सुन्दर श्रद्धांजलि!

    हे राम तुम इन तानाशाहों जैसे हो जाते तो
    जन्मभूमि "विवादित ढांचा" तो न कहलाती।

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  3. .
    .
    .
    "इस ठिठुरती सर्दी में
    सम्राट राम !
    किसी गरीब रिक्शेवाले के साथ
    तुम भी खुले में सो जाओगे।
    मेरी इस कविता पर कुछ लोग हँसेंगे
    कहेंगे इसे इसलिए दु:ख है कि
    सम्राट और रिक्शेवाला एक साथ क्यों हैं?
    मेरी कसौटी का संहार
    मेरी बकवास और कंफ्यूजन का अंत
    हर सुबह होता है राम
    जब मैं सुनता हूँ
    जम्हाई लेते रिक्शेवाले के मुँह से
    पहली आवाज़
    हे राम
    मेरे राम . . . "


    सबकी कसौटी का संहार
    सबकी बकवास और कंफ्यूजन का अंत
    इसी तरह कर दे राम !
    हे राम !
    मेरे राम !
    राम राम...

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  4. राम को लेकर
    अकुलाए,
    भकुआए,
    रिसिआए,
    मुँह फुलाए,
    गरमाए,
    ठण्डाए,
    इतराए,
    चहचहाए,
    बौराए,
    अलसाए,
    फनफनाए,
    गनगनाए,
    तमतमाए,
    गिड़गिड़ाए,
    मिमिआए,
    खिलखिलाए,
    या
    मुस्कराए
    जाते लोगों को
    आपने एक साथ ऐसा समेटा है
    कि कविता पढ़ लेने के बाद
    सहसा महसूस हो गया कि
    आपने मानस को काफी गहराई से फेटा है।
    :)

    मजा आ गया। जबरदस्त!

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  5. दशरथ सुत तिहुं लोक बखाना
    राम नाम का मरमु न जाना

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  6. राव साहब इस राममय रचना का रसास्वादन करते हुए readles in hinduism याद आया ,रामबोला का रामचरित मानस और रामानन्द का रामायण याद आया । रामविलास याद आये ,राम की शक्तिपूजा याद आई .. । इतना सब कुछ एक साथ याद दिलाने के लिये धन्यवाद ।

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  7. निषादराज के आलिंगन में
    चखूँ तुम्हें शबरी के जूठे बेरों में।
    कसूँ तुम्हें वानर भालुओं के
    उछाह भरे शौर्य पर....
    कौन कसेगा इस कसौटी पर राम को..वोट बॅंक का सवाल है...
    राम से जुड़ी बहुत सी भ्रांतियों का निवारण कर दिया
    आपकी कविता ने ...!!

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  8. Jo sanvedna sheel hain, sochte bhee hain aur padhte bhee hain, unke man mei bhee aise prashn, kabhee na kabhee aate honge.

    Fir bhee,

    " RAM " naam alaukik aakarshan aur punya praap samete hue hai -- ye bhee saty hai --
    prasn - ye pratham , sopan hai ...aage ' ek antheen vistar ' bhee hai ....

    ISHWAR Kya hai ? Ram kya hain ?
    unke uttar bhee , waheen se aarambh hote hain.

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  9. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  10. यह कविता नहीं ऐसा शब्द बाण है जो एक साथ सभी खल प्रवृत्तियों का संहार करके राम के चरणों में पुष्प गुच्छ बन समर्पित हो जाता है। ..गज़ब!

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  11. ‍६ दिसम्बर को राम को लेकर यह कविता काफ़ी कुछ कह जाती है।

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  12. कसौटियाँ सेलेक्टिव हैं, कसने वाले उच्छृंखल।

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