हुए नयन बन्द
टपके मधु बिन्दु
अधर पर अधर
और मधुर
हंसी
लाज घूंघट
झांक गई भाग
दसन अधर
मन सन सन
हाथ बरज हाथ
न करो स्पर्श
काम कुम्भ
न
हाथ झिटको नहीं !
बस रखो वहीं
सुख सुख
गलबहियां क्या खूब !
छू रहीं अनछुओं को
तार रहीं
अस्पृश्य को
प्रेम को।
बहुत सुंदर रचना,आनंद आ गया.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लगी आप की यह कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंकोई शब्द अतिरिक्त नहीं,
जवाब देंहटाएंभाव कहीं कोई रिक्त नहीं,
फिर कैसे कोई बोल रहा था,
हृदय प्रेम से तिक्त नहीं ।
ऐसी कालजयी रचनाओं पर टिप्पणियों का अभाव सालता है ! यहीं हिन्दी ब्लागिंग की******जाती है !
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग्गिंग की **** तो ठीक. पर ऐसी रचना पर एक इसी तरह की कटीली तस्वीर भी तो होनी चाहिए :)
जवाब देंहटाएंBadi anoothi rachana!
जवाब देंहटाएंवाह, श्रृंगार रस से ओतप्रोत कविता.. और अभिषेक से सहमत.. :)
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