तुम आओ तो न बात बने जाओ तो न बात बने
रहो अपने घर ही, मिलने मिलाने की जो बात बने।
हुक्का ए अवध, बनारस पान गुल कन्द मिष्ठान्न
सूरत नहीं सुरत नहीं, दिल ही न मिले क्या बात बने
बदल बदल जागते रहे रात भर करवटों के पहलू
सोचा किए तुम्हारे अंग हों तो नींद सी कुछ बात बने
चुरा कर शाम से दो पल लाए तनहा इस अँधियारे में
सबेरे सबेरे दिए गलबहिंया मन्दिर चलो तो बात बने।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
जवाब देंहटाएंगजब का शायराना अन्दाज है...!
जवाब देंहटाएंकोई क्यों न मर मिटे..!
आभार..!
विचारों की सहज अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंइस सुंदर रचना को साझा करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंतबियत तर हुई नहीं पूरी तरह
जवाब देंहटाएंकुछ जगजगाओ तो बात बने
NA JANE KYUN HE HAL CHAL
जवाब देंहटाएंachi kavita he
man bh gai
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
चुरा कर शाम से दो पल लाए तनहा इस अँधियारे में
जवाब देंहटाएंसबेरे सबेरे दिए गलबहिंया मन्दिर चलो तो बात बने ..
वाह वाह ..... कुछ कुछ ख़ुसरो अंदाज़ की रचना ..
बहुत अच्छा है आपका ये अंदाज़ ..
...तो बात बने ..बने क्या बात जहाँ बात बनाए न बने ...
जवाब देंहटाएंरहो अपने घर ही ...फिर वह अभिसारिका क्योकर हुयी गिरिजेश भैया ?
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअब आप गजलियाने लगे हैं !
जवाब देंहटाएं'' मयखाना-ए-रिफार्म की चिकनी जमीन पर ,
वाइज का खानदान भी आकर फिसल गया | ''
( फिलहाल शायर का नाम नहीं याद आ रहा है )
क्या कहने मिया... वाह! दिल ले गये जनाब..
जवाब देंहटाएंहुक्का ए अवध, बनारस पान गुल कन्द मिष्ठान्न
जवाब देंहटाएंसूरत नहीं सुरत नहीं, दिल ही न मिले क्या बात बने.....
बात बन गयी जी .....और बहुत अच्छी बनी