जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।
लीजिये हम भी इबादती-ठोंक शेर-वा रहे हैं --- '' जब इबादत में आँख ज़रा ज़रा खुली रहे , तब इबादत का लुत्फ़ और भी नूरानी है | '' -------------- तन्मनिया-चितवन को तो आप बखूबी जानते ही हैं न !
सही तो यही है।
जवाब देंहटाएंबहुत सूफियाना है भाई !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। इसीलिए तो हम आंखें खुली रखकर इबादत करते हैं।
जवाब देंहटाएंवाह,इन दो लाइनों में सब कुछ समाहित कर दिया.
जवाब देंहटाएंअरे वाह..!!!
जवाब देंहटाएंबड़ी खूबसूरत पंक्तियाँ...
जहाँ देखता हूँ, तू ही तू है । वाह ।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखा है!
हम इबादत में आँखें मूँदे बैठे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
सुभान अल्लाह!
जवाब देंहटाएंजिधर देखूं फिजां में रंग मुझको दिखता तेरा है
अंधेरी रात में किस चांदनी ने मुझको घेरा है।
एक बन्द याद आ गयी...
जवाब देंहटाएं"दिल ने इक ईंट से तामील किया ताजमहल
तूने इक बात कही लाख फसाने निकले..!"
आभार..!
लीजिये हम भी इबादती-ठोंक शेर-वा रहे हैं ---
जवाब देंहटाएं'' जब इबादत में आँख ज़रा ज़रा खुली रहे ,
तब इबादत का लुत्फ़ और भी नूरानी है | ''
-------------- तन्मनिया-चितवन को तो आप बखूबी जानते ही हैं न !
ज़र्रे-ज़र्रे से ही है ख़ुद ख़ुदा रौशन
जवाब देंहटाएंख़ुदाई गफ़लत में आंखें गंवा बैठे हैं....
वाह..क्या तुकबंदी है...
बेहतर विचार...
वाह वाह जी हमीं मन की आंखे बन्द किये रहते है, बहुत सुंदर शेर आप का धन्यवाद
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