जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।
घर के बगल में
उग आया है -
विकास स्तम्भ ।
प्रगति के श्वान करने लगे हैं
उस पर 'शंका' निवृत्ति
और
'शंका' समाधान।
घर के आँगन में
तुलसी लगा
अब 'जल देने' लगा हूँ।
.. मैं पुन: आस्थावान हो गया हूँ।
. . . घर के बगल में उग आया है - विकास स्तम्भ । प्रगति के श्वान करने लगे हैं उस पर 'शंका' निवृत्ति और 'शंका' समाधान।
यह भी तो सोचिये कि कहीं प्रगति के श्वान भी हो चुकें हैं आस्थावान जिसे आप कह रहे हैं यहाँ 'शंका'निवारण-समाधान वह उनकी ओर से भी विकास स्तंभ की नींव पर जल चढ़ाने का हो प्रयास!
छोटी किन्तु तीखे भाव की रचना बहुत पसन्द आयी गिरिजेश जी।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
आस्था ही त्राण दिला सकती है और अब मृत्यु ही मोक्ष है !
जवाब देंहटाएंयह पलायन है।
जवाब देंहटाएंरीतिकाल/वीरगाथा काल से भक्ति काल में ट्रांजिशन?
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना, प्रतीक सही बने हैं.
Bahut kam shabdon mein bahatreen rachna sundar bimb chitran ke saath..
जवाब देंहटाएंHaardik shubhkamnayne
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जवाब देंहटाएं.
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घर के बगल में
उग आया है -
विकास स्तम्भ ।
प्रगति के श्वान करने लगे हैं
उस पर 'शंका' निवृत्ति
और
'शंका' समाधान।
यह भी तो सोचिये कि
कहीं प्रगति के श्वान
भी हो चुकें हैं आस्थावान
जिसे आप कह रहे हैं यहाँ
'शंका'निवारण-समाधान
वह उनकी ओर से भी
विकास स्तंभ की नींव पर
जल चढ़ाने का हो प्रयास!
:) :)
बाहर का विकास कब तक सुख देगा । आस्था व अन्तर्मन बल पाये ।
जवाब देंहटाएंवाह!! जबरदस्त... आस्था को और मजबूती मिले.. आमीन..
जवाब देंहटाएंस्तम्भ पर शंका समाधान... बढ़िया है.
जवाब देंहटाएंनास्तिकता की नींव पड़ चुकी थी...
जवाब देंहटाएं.. मैं पुन: आस्थावान हो गया हूँ।...
इन दोनों सिरों के बीच...
यह विकास का स्तम्भ खड़ा है...
शंका असमाधान की स्थिति में...पुनः जड़ों को खंगालना...
दिनेश जी के कहे पलायन और इसमें...
बारीक सी लकीर खिंची है...
विचारोत्तेजक कविता...
घर के आँगन में
जवाब देंहटाएंतुलसी लगा
अब 'जल देने' लगा हूँ।
.. मैं पुन: आस्थावान हो गया हूँ।
वाह .....आपकी लेखनी को नमन .....!!
..."आस्था व अन्तर्मन बल पाये ।.."
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