भोर दिखा
भर निशा जागा सोम
मुस्कुराता
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अवगुंठन जगी साँवरी सूर्या साथ
चमक रही माँग रोली नवविवाह
प्रात पूर्ण उद्योग
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प्रस्फुर उल्लास बदन वदन
उमंग साँवरी देह हिरण्य द्युति
संगति साजन उपहार कंचन कंचन
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द्वितीयोनास्ति प्रेम समर्पण
सोम दृग चन्द्रिकामृत अंग अंग
सूर्या गौर तेजस्विनी निज हिरण्य समो
दिनकराय नमः
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : उत्सवधर्मिता और हमारा समाज
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-10-2013) "ख़ुद अपना आकाश रचो तुम" चर्चामंच : चर्चा अंक -1410” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
तव सुप्रभातम्
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