आवश्यक है रचना एक शृंगार कविता
तुम्हारी कमर सीधी करती भंगिमा पर
जैसे आवश्यक है तुम्हारा मुस्कुराना
ऐनक काँच जमी मेरी अंगुलियों पर
ये दवा हैं उस रोग की जिसे आयु कहते हैं
आयु देह की नहीं, आयु मन की नहीं
आयु प्रेम की जिसकी हर साँस पहरे हैं -
वाद के, कृत्रिम उपचार के, कथित यथार्थ के
आवश्यक है झूठ होना, दुखना, दुखाना
इस युग तो सही सुख की बातें सभी करते हैं!
अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंआवश्यक है !
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